पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४१३

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( ३६८) अंग्रेजी के तद्रूप शब्द हिन्दी में अंग्रेजी के कुछ शब्द् ( अस्पताल, लालटेन अादि } तद्भव रूप में चलते हैं और कुछ ( स्टेशन’ अादि ) तद्रूप चलते हैं । इन के रूप निश्चित हैं। परन्तु कुछ शब्द ऐसे भी हैं, जो द्विरूप चलते हैं-चल रहे हैं; जैसे "मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी के सोसाइटी’ को ‘सोसायटी' भी लिख देते हैं। ‘साइकिल'-‘सायकिल? अादि अन्य बीसों शब्द इसी श्रेणी के हैं । इन में से कौन-सा रूप सही है, कहना कठिन है। दूसरी भाषा का शब्द है। और अनेक छह अनेक रूपों में उच्चरित होता है। जैसा उच्चारण जिसे ठीक बँचा, लिख दिया। संस्कृत से आनेवाले तद्रूप शब्दों में यह बात नहीं है। ‘सरस्वती जैसे को तैसा सर्वत्र लिखा जाए गा; क्योंकि संस्कृत और हिन्दी का संबन्ध ही ऐसा है--लिपि की भी एकता है । अंग्रेजी श्रादि भाषाओं की लिपि-भिन्नता हिन्दी में ‘सोसाइटी' तथा 'सोसायटी' आदि शब्दों में एकरूपता नहीं आने देती । इसी लिए द्विविध प्रयोग यहाँ चलते हैं । इन में से किसी एक को शुद्ध और दूसरे को अशुद्ध कहने के लिए हमारे पास मजबूत तर्क नहीं है । सम्मेलन’ और ‘सभा' जैसी संस्थाएँ मिल कर कोई निर्णय दें, तो उसे हम सब लोग खुशी से मान लें गे । ऐसी स्थिति में “बहुमत' ही काम दे सकता है। वैसे हिन्दी की प्रकृति शब्दों की एकरूपता पसन्द करती है; यह बहुत बार कहा जा चुका है । ‘कोकिल' के मध्य ‘कृ’ का लोप हो झर प्राकृत-परम्परा में कोइल’ बना, जिस का कोइलिया’ रूप अब भी पूरबी बोलियों में प्रसिद्ध है-“कोइलिया कुकै अँबवा की डार'। परन्तु इस के 'इ’ को ‘य कर के राष्ट्रभाषा ने कोयल' रूप अपनाया । यहाँ कोइल’ चल नहीं सकता-चला ही नहीं । संस्कृत में ‘कोकिल’ पुल्लिङ्ग है। हिन्दी इस के तद्भव रूप ‘कोयल' में अपना पुंप्रत्यय लगा कर (शुक>सुअ + = ‘सुश्रा' की तरह) 'कोकिल> कोयल-+अ = ‘कोयला' बना सकती थी। परन्तु ‘कोयला' पुल्लिङ्ग शब्द हिन्दी में एक दूसरा है। इस से इसे अलग रखने के लिए ‘अ’ का प्रयोग नहीं और मधुर रूप देने के लिए स्त्रीलिङ्ग---‘कोयल कूकती है । | संस्कृत शब्दों के अह में विवेक संस्कृत के जो तद्रूप शब्द हिन्दी में चलते हैं, उन के प्रयोग की व्यवस्था यहाँ अपने हँग से होती है, संस्कृत-व्याकरण के अनुसार नहीं। इस सिद्धान्त को न जान कर लोग कभी-कभी सुनिश्चित-रूप शब्दों को भी झमेले में डाले