देते हैं, जिस का एक उदाहरण दम्पति' शब्द है । भाषा-शुद्धता की अधिक
ध्यान रखने वाले कुछ लोग संस्कृत-व्याकरण के अनुसार इसे “दम्पती' के
रूप में लिखते हैं ! बहुत बड़ी गलती है !
| ‘दम्पति-स्त्री-पुरुष का जोड़ा। ‘जाया’ और ‘पति' मिल कर
‘दम्पति' | ‘जाया’ को ‘इम्’ हो जाता है। संस्कृत में द्विवचन भी होता है।
और इसी लिए 'दम्पति’ का द्विवचन प्रयोग दम्पती' वहाँ होता है । हिन्दी
में द्विवचन होता ही नहीं–एकवचन और बहुवचन । इस लिए द्विवचन
दम्पती’ यहाँ गलत है ! यदि यहाँ द्विवचन होता भी, तो अपने व्याकरण के
अनुसार होता, संस्कृत व्याकरण के अनुसार नहीं । 'पुष्पलताः ईं हिन्दी में न
हो गा---पुष्पलताएँ हैं होता है। इसी तरह ‘मातरः आ रही हैं नहीं,
‘मादाएँ आ रही हैं। शुद्ध हिन्दी हैं । सर्भई भाषाओं में यही पद्धति है ।
हिन्दी का “श्रोती' शब्द अंग्रेजी में जा कर वहीं के नियमों से चलता हैं।
हिन्दी-व्याकरण के अनुसार अंग्रेजी में धोती' का बहुबचन धोतियाँ र
हो या, “धोतीज़ हो गा–‘ब्रिग साई धोतीञ्ज । 'त्रिंग माई धोतियाँ’ गलत
अंग्रेजी हो गी । इसी तरह हिन्दी में दम्पति’ का द्विवचन प्रयोग गलत है ।
‘अप्सरसः' तथा 'दाराः' शब्द संस्कृत में बहुवचन चलते हैं; पर हिन्दी
में इनके एकवचन भी 'अप्सरा' तथा ‘दारा’ रूप चलते हैं । ‘दार' शब्द
भाय--वाचक है और ( संस्कृत में ) पुल्लिङ्ग है। परन्तु हिन्दी में ‘दारा
बना कर स्त्रीलिङ्ग है । “कुलत्र' शब्द संस्कृत में नपुंसक लिङ्ग है; पर हिन्दी में
स्त्रीलिङ्ग है; यद्यपि अन्य प्रायः सब नपुंसक-लिङ्ग शब्द पुलिंङ्ग में यहाँ चलते
हैं । सो, “दम्पती' आदि हिन्दी में गलत प्रयोग हैं।
यह भी देखा जाता है कि कभी-कभी हिन्दी का अनुसरण संस्कृत में
होने लगता है।” “अप्सरस के ‘स्’ को नियमानुसार हटा कर और
इस स्त्रीलिङ्ग शब्द में संस्कृत का ही स्त्री-प्रत्यय लगा कर अप्स।'
शब्द हिन्दी ने अपना बना लिया। बाद में यह (अपसरा') शब्द
संस्कृत में भी ले लिया गया । “शब्दार्णव' में एकत्वे 'अप्सरा' स्वीकार्
किया गया है । परन्तु *अप्सरः संस्कृत में चली नहीं।) :
तद्भव शब्दों की अपनी सुनिश्चित पद्धति है। ऐसे शब्दों में कुछ ऐसे
भी हैं, जो ठेठ ‘मूलभाषा' या वेदभाषा' से आए हैं—“तृतीय संस्कृत' से
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