पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(३७३)

करने के लिए ) पृथक चीज है । *डाँ' से भी बोलती बन्द हो जाती है-- मुहँ बन्द हो जाता है । सम्भव है, उस ‘डाट’ से ही इस ( ‘डाँड ) का संबन्ध हो । परन्तु अर्थ-भेद से शब्दों का रूप-भेद स्वाभाविक है । सो, द्रव्य'-वाचक ‘डाट' शब्द है और क्रिया-वाचक ‘डाँट । “पाख' और 'पाँख' में अन्तर है। ‘डाट' वैसे ‘डट' धातु से जान पड़ती है । इटना-अड़ना ।। कोई-कोई संबोधन में बच्चों, ध्यान से सुनो' यों ‘श्रो' को अनुनासिक कर देते हैं और लिखे भी देते हैं । येइ गलती है। संबोधन के बहुवचन में श्री विभक्ति लगती है; *ओं नहीं। इसी लिए-‘बाबुछो !' धोबियों ? श्रादि निरनुनासिक प्रयोग होते हैं। बहनों में भी “ओ' की अनुनासिकता गलत है। ' ते अनुनासिक है ही। सम्भव है, इसी (‘’ ) की आवाज को लोदा ‘ओं की आवाज समझ कर उसे ( 'ओ' को } अनुनासिक कर देते हौं । यह ‘अ’ विभक्ति उस बहुत्व-जोधक श्रों से भिन्न चीज है | संबोधन के लिए प्रसिद्ध श्रो' अव्यय ही हिन्दी में ( संबोधन के बहुवचन में ) विभक्ति रूप से गृहीत हो गया है । पञ्जाल ( कन्नौज-कानपुर आदि ) में ‘बेच' धातु की बेंच' बोलते हैं । परन्तु इधर मेरठ की ओर निरनुनासिक ‘बेच' ही चलता है ! राष्ट्रभाषा ने निरनुनासिक रूप ही ग्रहण किया हैं-'बैल बेच दो' | ‘बेच दो' लिखना गलत है। इसी तरह उधर ‘नोंक, रॉक, टोंक' शब्द अनुनासिक रूप में बोले जाते हैं, पर राष्ट्रभाषा में नोक, रोक, टोक' चलते हैं। हाँ, ‘झोक अबश्य अनुनासिक है। इसी के साहचर्य से नोक' को भी लोगों ने अनु:- मासिक समझ लिया और “नोक-झोंक' लिखने लगे ! “नोक' कदाचित् 'नाक' से हो ! नाक का अगला भाग कुछ इस तरह आगे पतला होता हुआ एक आकृति बनाता है, जो अन्य किसी भी अंग में देखी नहीं जाती । नारू की इस श्राकृति को नोक' कह सकते हैं-नुकीली नाक, चमकदार आखें । नुकीली नाक’----जैसे ‘गुलाबी रंग का गुलाब' } 'नाक' है ‘नासिका का रूप । वंश भर में कहीं स्वर अनुनासिक नहीं है। चाहे जिस वंश का नोक' शब्द हो, इस का कोई स्वर अनुनासिक नहीं है; इतने से मतलब ! विभक्तियों का प्रयोग विभक्तियों का तथा संबन्ध-प्रत्ययों का प्रयोग भी सावधानी से करना चाहिए । कारकों का तथा विविध संबन्धों का बोध इन्हीं के ऊपर है ।