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‘क्रोध का अधिकरण या श्राश्रय है, वही 'कर्म' रूप से अभिप्रेत है । खाँसी

‘क्रोध' या टट्टी-पेशाब आदि ‘ाने में स्वतंत्र हैं; इस लिए 'कर्ता'। उन्हीं के अनुसार कर्तृ-वाच्य क्रिया है---‘झी आई 'क्रोध आया' } किसे क्रोध आया ! 'सीता को'। 'सीता' कर्म कारक है । क्रोध, टट्टी-मेशा आदि में पुत्र-पुत्री की तरह ममता की भावना नहीं है कि संबन्ध-विभक्ति से उस का प्रकटन हो ! इस लिए---‘सीता फो क्रोध आया’ और ‘सीता के पुत्र हुआ। हाँ, राम को पुत्र-प्राप्ति हुई जैसे प्रयोग ठीक । यह अलग बात है। इम ने कहा कि राम को ज्वर आ गया श्रादि में ‘ज्वर' आदि कर्ता- फारक और 'राम' आदि कर्म-कारक हैं । परन्तु--- ‘राम को तेज ज्वर है'---उसे बुखार हो गया' अदि में ‘रामको आदि किस कारक में हैं; प्रश्न हो सकता है; क्योंकि 'है' क्रिया अकर्मक है। सकर्मक तो अकर्मक हो सकती है; यदि कर्म की विवक्षा न हो–‘राम पढ़ रहा है। क्या' पढ़ रहा है, नहीं कहा | परन्तु अकर्सक है' सकर्मक कैसे १ तब ‘राम को ज्वर है' में ‘राम को फर्म-कारक कैसे ? फर्म नहीं, तो फिर कौन सा कारक है ? ज्वर' तो कृता-कारक है न ! प्रश्न ठीक है । है' स्वभावतः अकर्मक क्रिया है; परन्तु यहाँ सकर्मक प्रयोग है। अकर्मक क्रिया को भी कभी सफर्मक प्रयोग हो जाता है । “नम् धातु संस्कृत में अकर्मक है-- ‘नमन्ति फलिनो वृक्षाः–‘नमन्ति गुणिनो जनाः फलदार वृक्ष झुकते हैं---गुणी अन नम्र होते हैं। ‘मः पितरं नुमति:---राम पिता को नमन करता है। यहाँ ‘नम्' धातु का सकर्मक प्रयोग है ।। हिन्दी की 'हो' धातु अकर्मक है-‘वर्षा होती है, तब अन्न होता है। परन्तु इसी “हो” का कहीं सकर्मक प्रयोग भी देखा जाता है--- , राम से वह काम न हो गा मुझ से उन की खुशामद न हो सके यी !