पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४२१

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१ ३७६ } यहाँ ‘राम से' तथा 'मुझ से' कर्ता-कारक हैं और ‘काम’ तथा खुशामद कर्म-कारक हैं । ‘काम’ तथा ‘खुवामद” स्वतः होने में समर्थ नहीं कि इन्हें कत-झारक मान लें। राम से' तथा 'मुझ से’ ‘कर्ता के अतिरिक्त अन्य कोई कारक नहीं । “करण्’ तो स्वतः दूसरे के हाथ का होता है-२स चाकू से कलस बनाता है। यदि ऐसा न हो, स्वतः प्रवृत्त हो, तो कर नहीं, ‘हेतु होता है- वर्धा से अन्न होता है। क्रोध से हानि होती है। सन्तोष से सुख होता है। यहाँ सर्वत्र ‘हेतु’ में से विभक्ति लगी है । अन्न कैसे होता है? हानि कैसे होती है ? सुख कब होता है ? कैसे होता है ? ये प्रश्न हैं । करण की जिज्ञासा में किस से या किस चीज से प्रश्न होते हैं---‘साग किस से बनाया जाए ? --- ‘चाकू से। राम को वर है मैं राम की क-कारक है। 'है' का यहाँ सकर्मक प्रयोग है । ‘राम से यह काम न ही गा' में क्रिया कर्म-वाच्य है, शक्ति-निषेध करना है; इस लिए कत’ कारक से’ विभक्ति से युक्त है। *राम' न ‘करण' है, न हेतु है-- काम का करनेवाला है-'कर्ता' है । उस की शक्ति का निषेध है। ये इस तरह की बातें आगे उत्तरार्द्ध में और अधिक स्पष्ट हो जाएँगी । | सेक्षेप यह कि विभक्तियों का प्रयोग ठीक करना चाहिए; अन्यथा वाक्य लँगड़ा हो जाएगा। अब 'पद' ही ठीक न हों गे, तो वाक्य चले गा कैसे ? सीता के लड़की हुई

  • ‘सुमित्रा के लड़का हुआ

यहाँ संबन्ध में 'के' विभक्ति है----प्रत्यय न लगे गा । “तेरे कन्या हुई की जगह तेरी कन्या हुई संबन्ध-प्रत्यय न लगे गा । संस्कृत में भी ‘तव कन्या अभवत्’ की जगह त्वदीया कन्या अभवत्’ न हो गा । कारण यह कि पैदा होने पर ही तो पितृ-संबन्ध था मातृ-संबन्ध हो गाने १ ‘रास के लड़का हु -यानी जो लड़का हुआ है, पैदा हुआ है, उस का राम से 'पितृ-पुत्र संबन्ध हैं। पैदा हो जाने के बाद प्रत्यय लगे गाराम का लड़का रोता है' ‘सुमित्रा की लड़की खेलती है इत्यादि । पैदा होने में संबन्ध-प्रत्यय न