पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४२२

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लगे गा; क्योंकि उत्पत्ति के अनन्तर ही वैसा संबन्ध होता है। उस को गर्भ गिर गया हो गा’ यहाँ प्रत्यय है। राम का लड़का अगले जन्म में एक ऋषि के पैदा हुआ यहाँ राम का लड़का है और वह ऋषि के' या ‘ऋष के यहाँ या ऋषि के घर पैदा हुआ है । ‘राम का लड़का जो था, वह वहाँ पैदा हुआ है। यों संबन्ध-विभक्ति झा, संबन्ध-प्रत्यय का तथा ‘क्रो’ अादि सभी विभक्तियों का प्रयोग-भेद व्यवस्थित है।

विराम-चिह्न

आज-कल विराम-चिह्न का भी व्याकरण-ग्रन्थों में निर्देश रहता है। छोटे छात्रों की पुस्तकों में इस विषय को संक्षेप से रहना ठीक भी है। इस पुस्तक के पाठकों के लिए विराम-चिह्नों का ज्ञान कराना मजाक की बात हो गी । परन्तु दो-चार विशेष बातें कह देना आवश्यक है। । निर्देशक या उद्धरण-सूचके चिह्न विन्दुद्ध-पूर्वक एक झाड़ी रेखा के रूप में रहता है (:-) । संस्कृत भाषा में विन्दुओं का प्रयोग भ्रम पैदा कर सकता है; इस लिए ( वहाँ } रेखा-मात्र का चलन ठीक; परन्तु हिन्दी में वैसे भ्रम की कोई बात नहीं है। हाँ, संस्कृत वाक्यों का उद्धरण हो, तब ( हिन्दी में भी उस जगह ) विन्दु-रहित रेखा ही दी जाएगी । विन्दु-रहित भी यह चिह्न चलता ही है। “किं' के प्रयोग के साथ अल्प-विराम का चिह्न देना ठीक नहीं। ‘कि का भी वही काम है। जाओ गे कि, नहीं” ठीक नहीं । “जाओ गे कि नहीं चाहिए। निर्देशक के साथ भी 'कि' का प्रयोग ठीक नहीं । राम ने कहा था कि-“यदि काम हो जाएगा, तो चलो अॐ गा”। यहाँ कि अनावश्यक है। यहाँ ‘कि ठीक हैं-राम ने कहा था कि काम हो जाए, गा, ते चला आऊँ गा। यानी किसी के वाक्य को ज्यों का त्यों उद्धृत करने में केवल ‘निर्देशक' चाहिए; पर उस के मतलब से ही मतलब हो, तो फिर कि' को प्रयोग काम चला दे गा ।। | समाससूचक चिह्न का प्रयोग भी कभी-कभी भ्रस या सन्देह पैदा कुर देता है, यदि सावधानी न बरती जाए। एक ग्रन्थ का नाम ‘कविराज- मार्ग है । “कवि-राज-मार्ग से दो मतलब निकल सकते हैं। कविराज का भार्ग---यानी सिद्ध कवियों की सरणि । दूसरा अर्थ-----कवियों को राज-