पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४३२

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( ३८७ ) अवज्ञा करे गा' ऐसी जगह ‘दुख' कर्म का पर-प्रयोग ठीक है। ये सब बातें अन्यत्र विस्तार से समझाई जाएँगी । प्राथम्य” या पूर्व-प्रयोग का मतलब प्रधानता नहीं है । वाक्य में प्रधान तो क्रिया ही होती है--विधेय अंश पर प्रधानता रहती है; भले ही वह कहीं हो । किसी के बारे में आप जो कुछ कहना चाहते हैं, श्रोता के लिए वही मुख्य चीज है। उसी को वह जानना चाहता है । उद्देश्य तो उसे ज्ञात ही है। वक्ता के लिए भी विधेय ही प्रधान हैं। किसी के बारे में वह जो कुछ कहना चाहूता है, वही तो मुख्य है। क्रिया--पद अंश विधेय होतई है और उस का परिकर भी । क्रिया-पद होना, बढ़ना, घटना, नष्ट होना, पढ़ना, खाना, पीना श्रादि क्रियाएँ हैं । किसी की कोई स्थिति क्रिया-पद बतलाते हैं । अन्य शब्द उद्देश्य रूप से आते हैं। राम विद्वान् है' वाक्य में है' क्रिी हैं, जिस का संबन्ध विद्वान् से है । 'राम' में विद्वत्ता है। यह कहना है । इस लिए विद्वान्' 'राम' ( या “उद्देश्य ) का विधेय-विशेष; है । राम की एक विशेषता बतलाई गई है। ‘राम विद्वान्' कहने से कोई मतलब न निकले गा। यदि कहीं क्रिया की प्रतीति स्वतः हो, तब प्रत्यक्ष प्रयोग के बिना भी वाक्य बन जाए -- 'अच्छा भाई, राम मूर्ख और गोविन्द विद्वान् !' थहाँ है' का प्रयोग करने की जरूरत नहीं। ‘है' का प्रयोग इस लिए नहीं कि वस्तुतः मूर्खता और विद्वता का अस्तित्व स्वीकार नहीं है ।। | क्रियाएँ कहीं ‘सिद्ध-रूप होती हैं, कहीं 'साध्य रूप । ‘सिद्ध ज्ञात होता और साध्य' अज्ञात । ‘सिद्ध’ को उद्देश्य बना सकते हैं । क्रिया का विधेय अंश साध्य कहलाता है। राम पढ़ता है । विधेय में पढ़ता है' साध्य है। ‘पढ़ने का विधान है। राम निबन्ध लिखता है' में लिखने का विधान है, जिस का संबन्ध ( कर्म रूप से ) निबन्ध’ से है । फलतः 'राम' उद्देश्य और विधेय' अंश है ‘निबन्ध लिखन' । 'राम' को आप जानते हैं; पर यह नहीं जानते कि वह क्या करता है ! इस अज्ञात को बतलानेवाला अंश

  • विधेय' या ‘साध्य है। परन्तु ।
  • निबन्ध-लेखक भी आजकल पथभ्रष्ट हो गए हैं।