पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४४०

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परन्तु वर्तमान के ‘क’ में और विधि आदि के करै अदि में भेद है । एकत्र ‘इ’ की ‘हि' प्रत्यय से निष्पत्ति है और अन्यत्र ( विधि में } ‘पठेत् आदि की छाया है। अन्य वर्ष (९) का लोप और 'ठ' को ‘६' । कुरु-जनपद में अभी तक पढे' जैसा ही बोलते हैं, राष्ट्रभाषा में--पढे । वर्तमान के रूपों की तरह ये विधि आदि के रूप भी तिङन्त ही हैं। इन में भी लिङ्ग-भेद से रूप--भेद नहीं होती । परन्तु यहाँ हैं' की सन्तति *दि या 'इ' नहीं है । विधि में स्वतंत्र 'इ' प्रत्यय है, जिस की गुण-सन्धि धातु के अन्त्य 'अ' से हो जाती है-पढे, करे, टले आदि । । सो, ‘है' आदि रूप में “ह' धातु समझ सकते हैं। गोस्वामी तुलसीदास के जगत्-प्रसिद्ध अवधी-महाकाव्य रामचरितमानत' में हैं' के लिए इहि” का प्रयोग भी हुआ है । ‘हसि’ भी अश्य है; मध्यम पुरुष, एकवदन में । इस से भी स्पष्ट है कि सुचार्थक 'ह' धातु है। इङि' में 'हि' दी है, जो ‘करहिं श्रादि वर्तमानकालिक क्रियाओं में । प्रत्यय के ‘g' का लव और वृद्धि'-सन्धि ३ कर ( ‘क’ श्रादि की तरह ) है’ भी बन गया हैं -- *हि.. हुई-है। इस प्रक्रिया से केवल यही है' ( तिल ) राष्ट्रभाषा में गृति है, वे ( अच्च ) रूप ‘हदि' अद नहीं। इस सञ्चार्थक ‘इ' धातु के अतिरिक्त अन्य फहीं इस वर्तमानकाजिक 'हि' अथवा 'इ' प्रत्यक्ष का प्रयोग राष्ट्रभाषा में नहीं होता। सभी धातुओं के “करत' 'मरत' श्रादि रूप बना कर अपनी पुविभक्ति से करता-‘मरत' और आगे हैं' का योग--‘ङ्करता हैं मरता है आदि । सो, वर्तमान काल का ३' प्रत्यय इ १ एकमात्र ) है' धातु से होता है और इस की सहायता से श्रन्थ सभी धातुश्चों की वर्तमानालिक क्रियाएँ अनदी हैं। यहाँ तक कि ‘भू-परिवार की 'हो' धातु में भी पृथ, 'इ' एल्यय नहीं लगता। कृदन्त ‘होता' के आगे है दोड़ कर होता है। रूप होता हैं । आगे कृदन्त प्रकरण पृथक् लिङ्ग जाम, गर । हिन्दी की ‘' तथा 'हो' धातु का विषय--विभाइन संस्कृत की अस्' तथा 'भू' का जैदा ही है । कहीं अन्तर भी है। अन्' और 'भू' दोनों के प्रयोग वर्तमान काल में तिङ' प्रत्य% से होते हैं, जब कि हिन्दी में 'हो' से 'त' कृदन्त और ‘हे’ से तिङन्त 'इ' प्रत्यय हो र ‘इक्षा ६ रूप बनता है। स्’ के भूत और भविष्यत् में प्रयोग नहीं होते, 'भू' के ईई रूप चलते हैं । हिन्दी में भी 'ही' से सामान्य भूतकालिक 'य' प्रत्यय होता है; पर लुप्त हो जाता है। पंजाबी में सोया है’ ‘रोय हैं' की तरह होया हैं' भी चलता है। परन्तु द्विन्दी में * का लोप हो जाता है और ‘’ को ‘अ’ हो जाता है-‘हुअा है' । साधारण