पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(३९६)


( या वर्तमान काल का ) 'त' प्रत्यय भी 'हो' से ही होता है; ‘ह से नहीं-- ‘होता है। परन्तु पूर्ण भूतकाल द्योतन करने के लिए 'ह' से ही 'त' प्रत्यय होता है और पुविभक्ति से युक्त हो कर जनपदीय बौलियों में एक राजा हता । उस के एक रानी हती, दो लड़के हते' य प्रयोग अब भी होते- चलते हैं । ब्रजभाषा-साहित्य में भी--एक राजा हलो जैसे प्रयोग मिलते हैं । राष्ट्रभाषा को 'हता’ ‘हत’ ‘हती' आदि प्रयोग शायद ठीक नहीं हुँचे; क्योंकि संस्कृत के हिँसार्थक ‘हत' का आभास हो जाता है-अमङ्गल-ला लगता है। फलतः यहाँ वर्ण-व्यत्यय हो कर इता' से 'था' हो गया। ‘ह, अ त् आ' को त् , अ श्रा’ हो गया । "त’ और ‘६ मिले कर ‘थ्' । दो अकारों में सवर्णदीर्घ एकदेश' । नियम-परिपालनार्थ पुंविभक्ति भी---- ‘था' । बहुवचन में थे और स्त्रीलिङ्ग में ‘थी। सामान्य भूतकाल का 'य' 'हो' से ही( यद्यपि लुस ) ‘हुआ था' ।। भविष्यत् काल का प्रत्यय भी 'हो' से ही, इ' से नहीं होगा, होंगे, होगी। इस तरह ‘हो' तथा 'ह' के प्रयोग विषय--भेद से चलते हैं। कुरु-जनपद ( मेरठीय परिसर ) में तथा पाञ्चाल में 'है' का चलन है; परन्तु पड़ोस के 'कुरु-जाङ्गल, ( रोहतक-करनाल अदि के जिलों ) में 'ई' की जगह ‘सै’ चलता हैं --‘त के करै सै ---( तू क्या करता है )। यह 'मैं' उधर { राजस्थान में ) ३’ हो जाता है और इधर ( कुरु-जनपद में ) है । परन्तु आगे ( पर्वतीय प्रदेश में ) फिर छै’ ! ये सब बातें भाषा-विज्ञान से संबन्ध रखती हैं । प्रसंगतः यहाँ कुछ उल्लेख किया गया। मतलब केवल इतने से किं संस्कृत ‘असू' से हिन्दी ह’---है' और 'भू' से 'हो' धातु का ताल-मेल अमता है। ‘भवति' से ही होता है यह खण्डद्वयात्मक क्रिया नहीं है। ‘भवति तिङन्त किया है-“बालकः भवति’ ‘बालिका भवति । हिन्दी की ‘होता है' क्रिया में पूर्वं अंश कृदंत है। श्रौर पर अंश तिङन्त । एकत्र लिङ्ग-भेद होता है, अपरत्र नहीं--‘अन्न होता है, जब वर्षा होती है । 'हो' का रूप बदला है; 'है' का तदवस्थ है। राम था' में था' कृदन्त क्रिया है और राम है' में हैं' तिङन्त ।

  • अन्न होता है' में होता है' कृदन्त-तिङन्त संयुक्त क्रिया । दो धातुओं से दो

विभिन्न ( कृदन्त-तिङन्त्र पद्धतियाँ )। फिर दोनों अंशों की समष्टि से संस्कृत कति का अर्थ होता है।