पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४४३

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  • गया’ की ‘ग' धातु की भी । यहाँ प्रकृति-प्रत्यय के विभाजन से ही सब समझाया

जाता है । वैसे ‘उत्थान' से उठना' और 'गतः' से 'गया' का विकास है। धातुओं की उत्पत्ति और उन के प्रयोग भाषा में ‘घातु' का बड़ा महत्व है । भाषा का उद्भव ही धातुओं से हुा है । प्रयोग में भी क्रिया की ही प्रधानता रहती है--विधेयता उसी पर रहती है । इसी लिए वाक्य या भाषा को ‘क्रियाप्रधान' कहते हैं ।। भाषा मनुष्य की बनाई चीज है; परन्तु इस का विकास नैसर्गिक रूप में हुअा है---धीरे-धीरे । इस विकास में युग के युग बीत गए हैं। जैसे-जैसे मनुष्य का विकास होता गया, उस फी भाषा विकसित होती गई और जैसे- जैसे भाषा का विकास होता गया, मानव का विकास होता गया । यदि भाषा न बनती, तो मनुष्य कभी भी ‘मनुष्य' न बन पाता । मनुष्य ने भाषा का निर्माण किया और भाषा ने मनुष्य का निर्माण किया । परन्तु भाषा का प्रारम्भ कैसे हुआ ? इस की कल्पना है। मनुष्य भी तब बनों में, पर्वतों पर, घूमता-रहता था। ऊपर से सूखे पचे गिरते हुए ‘पत् पत्' जैसी ध्वनि करते हैं । बार-बार यह ध्वनि सुन कर और ऊपर से नीचे गिरने की क्रिया देख कर उस अर्थ में ‘पत्' का संकेत कर लिया । ऊपर से नीचे गिरने को पत्' शब्द से वह क्रिया लोग कहने- समझने लगे। कोई कहीं नदी में गिर गया, तो पतु केइ कर और साथ ही कुछ इशारा कर के दूसरे को समझा दिया। आगे चल कर काले भी सूचित होने लगा--पतति-गिरता है और अपतत्-‘गिरा। विधि तथा आज्ञा आदि के भी रूप बने-‘पतेत्-‘पतु' । और अागे चल कर ‘पुरुष- भैद से भी क्रिया-पदः भिन्न होने लगे। पवति' या अपनत्’ से पूरा मतलब समझ में न आता था। तब कर्ता जोड़ने लगे--‘वृक्षः पतति' 'बालकः पतति । फिर ‘त्वम् अहम्' के लिए पृथक् प्रत्यय लगा कर ‘पतसि' और पतामि ( तू गिरता है, गिरता हूँ) आदि का उद्भव हुआ। बहुत आगे चल कर जब भाषा का व्याकरण बना, तब मूल शब्द ( पत्) को धातु संज्ञा मिली और उस के आगे लगे उन शब्दांशों को प्रत्यय' कहा गया; क्योंकि उन के ही द्वारा विविध काल आदिकों की प्रतीति होती है । ऊपर से चुच्चों से ---उस तरह गिरनेवाली चीज को ‘पत्र' कहा गया--‘पत्’ ‘पत्’ र के पत्र गिरते हैं। व्याकरण में उन ( पतति आदि } क्रियाशब्दों को