पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४४५

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( ४०० ) किसी दूसरे किया--पद की आकांक्षा जहाँ न रहे, वह प्रख्यात' । राम गया' में ‘गया' पद किसी दूसरे क्रिया-पद की आकांक्षा नहीं रखता । परन्तु ‘गया समय हाथ आता नही' में यह बात नहीं । ‘आता' के बिना काम न चले गा | हाँ, ‘समय गया' मात्र कहे, समय का चला जाना मात्र । विधेय हो, तब अवश्य गया' आख्यात कहा जाए गा ।।

  • कर्मणि? या ‘भावे' जो कृदन्त प्रत्यय होते हैं, हिन्दी उन्हें अपनी

विभक्तियों के द्वारा भी ख्याते तथा विशेषण श्रादि के रूपों में विभक्त करती है । कर्मवाच्य ‘य' प्रत्ययान्त आख्यात भूतकाल में 'ने' विभक्ति से युक्त कत के साथ रहता है- राम ने पुस्तक देखी- लड़की ने पुष्प देखा परन्तु यही 'य' प्रत्यय जब अख्यात से भिन्न स्थिति में रहता है, तब कर्तृत्व ‘का' संबन्ध-प्रत्यय से प्रकट होता है- १–राम की देखी यह पुस्तक है। २-लड़की को देखा-भाला यह पुष्प है। यहाँ देखने पर प्रधानता नहीं है; पुस्तक तथा पुष्प का होना' विधेय है । इस लिए देखा-देखी' अख्थिात नहीं; और इसी लिए इन के कर्ता कारक (राम’ ओर लड़की') ने विभक्ति के साथ नहीं हैं। ‘का' से ही कर्तृत्व-निर्देश हैं-“कर्तरि षष्ठी' । संस्कृत में विभक्तियों फ़ा यो विषय- विभाजन नहीं है । वहाँ- १-रामेण इदं पुष्पम् दृष्टम् | ( राम ने यह पुष्प देखा ) और---- २-रामेण दृष्टं पुष्पमिदं मया नीतम्

  • ( राम को देखा हुश्रा यह् पुष्य मैं ने लिया )

~ सर्वत्र तृतीया विभक्ति चलती है। प्रथम वाक्य में ‘दृष्टम् श्रख्यात है; दूसरे में विशेषस्य ।