पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४४६

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भाववाच्य 'न' प्रत्यय लीजिए - १-राम को जागना है, लड़कों को जागना हैं । २--स्त्रियों को गाना बजाना है—मुन्नी को सोना है। सर्वत्र ‘को' विभक्ति कव कारक में है। ‘जाराना था' जागना हो गा’ आदि भी इसी तरह रहें गे । परन्तु 'न' प्रत्यय यही जन आख्यान में नहीं, विशेषण-रूप में रहता है, तब कर्तृ-निर्देश उसी 'का' से होता है- १-- राम का जागना बीमारी पैदा करेगा २-स्त्रियों का गाना-बजाना हमें न सोने देगा | पैदा झरना' तथा 'सोने न देना’ आख्यात हैं। ‘जागना’ और ‘गाना- जाना' कृदन्त भाववाचक संज्ञाएँ हैं, जिन पर उन ख्यातों का कर्तृत्व है । और इन (जागने तथा गाने-बजाने) के कर्ता-कारकों में 'क' प्रत्यय लगा है । इस तरह विभक्ति-भेद से प्रख्यात स्पष्ट रखे गये हैं । बहुत स्पष्टतः हैं । वैसे वाक्य की बनावट से ही सब मालूम हो जाता है ।। कृदन्त क्रिया में प्रयोग-सौर्य है; इस लिए इन का चलन बढ़ता गया और तिङन्त फ़ा कम होता गया । हिन्दी का विकास भारतीय मूलभाषा' से है; इस लिए इस में दोनों पद्धतियाँ क्रिया-शब्दों में स्पष्ट हैं। यहाँ 'ति' प्रत्यय या कृत् प्रत्यय संस्कृत के ( तद्रूप } नहीं हैं। परन्तु संस्कार स्पष्टतः वे ही हैं । गन्ने के रस में श्रौर चीनी के रूप में कितना अन्तर है ? वाद-विश्लेषण से सब स्पष्ट हो जाता है । संस्कृत में (और प्राकृत में भीं) छो क्रियाओं के वे दो भेद किए गए हैं, उन में मुख्य अन्तर यह है कि कृदन्त क्रियाएँ तो संज्ञाओं की तरह चलती हैं और तिङन्तों की अपनी अलग पद्धति है । हिन्दी में स्पष्टता के लिए यही एक पहचान हैं । पचा शिरा' और 'लड़की गिर।' यहाँ गिरा' तथा 'गिरी' शब्द, स्पष्टतः कृदन्ते हैं। परन्तु ‘लड़का यहाँ हैं “लड़की यहाँ है' में हैं। क्रिया तिङन्त है। लड़की पढ़े’ ‘लड़की पढ़े' में पढ़े क्रिया तिन्त' । ‘कृदन्त' तथा ‘तिङन्तु शब्द यहाँ रूढ़ हैं। २६