पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४४७

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( ४०२ ) हिन्दी की क्रियाएँ कृदन्त अधिक है, तिङन्त बहुत कम । दोनों पद्धतियों के सम्मिलित प्रयोग भी बहुत हैं। संस्कृत में भी ‘सुप्तः अस्ति’ ( सीया है ) आदि कृदन्त-तिङन्त प्रयोग होते हैं । हिन्दी में वर्तमान काल की सब क्रियाएँ कृदन्त-तिङन्त' हैं---न केवल कृदन्त, न केवल तिङन्त । इसी लिए दो खण्ड' स्पष्ट दिखाई देते हैं--पढ़ता है' खाता है । प्रथम खण्ड कृदन्त, दूसरा तिङन्त । केवल है' तिङन्त है, जो अन्य सभी कृदन्त शब्दों का साथ देती है। इस के बिना काम चल नहीं सकता। 'म पढ़ता’ ‘लड़की पढ़ती कृइने से काम चल नहीं सकता; क्योंकि ये शब्द साकाङ्क्ष हैं। राम पढ़ता, यदि सहयोग मिलता और लड़की पढ़ती, तो परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाती' यों वर्तमान काल से भिन्न स्थलों में केवल पढ़ता-पढ़ती' चलते हैं ।

  • पृढ़ता-पढ़ती के आगे हैं के अतिरिक्त कृदन्त ‘या’ भी ( भूतकाल में है

लगता है। राम पढ़ता था’ ‘सुशीला पड़ती थी' इत्यादि । इसी लिए, वर्तमान काल की क्रियाओं में है' का लगना अनिवार्य है। यों पढ़ता है' “पढ़ती है क्रियाएँ ‘कृदन्त-तिङन्त’ हैं। पढ़ा-“पढ़ी' कृदन्त क्रियाएँ और पढ़े’ ‘पढ़ो अदि तिङन्त हैं । एकत्र संज्ञा की तरह दाल, अन्यत्र अपनी स्वतंत्र पद्धति । संज्ञाओं की तरह लड़का पढ़ता लड़की पढ़ती’ ‘लड़के पढ़ते’ रूप और उन के आगे है। बहुवचन में हैं। लड़के पढ़ते हैं लड़कियाँ पढ़ती हैं। सीधा मार्ग । 'पुरुष' और 'वचन'

  • पुरूष-प्रतीति केवल तिङन्त क्रियाओं से होती है | वचन-भेद कृदन्त

क्रियाओं में भी ( संज्ञा की तरह ) होता है । 'संसार-सागरे पतितः' कहने से पता न चले गा कि कौन ‘पतितः' है। आगे ‘अस्मि' या ‘असि' लगा कर ही मध्यम था उत्तम पुरुष' बताया जा सके गा । 'अन्यपुरुष' की विवक्षा हो, तो भी स्पष्टता के लिए फल का निर्देश करना हो गा। केवल ‘अस्ति से काम न चले गा । इसी तरह हिन्दी में भी तिङन्त क्रियाओं से ‘पुरुष-प्रतीति होती है, कृदन्तों से नहीं । “पढ़ता हूँ' कहने से ‘उत्तमपुरुष स्पष्ट हो जाता हैं । 'मैं' कहने की जरूरत नहीं; क्योंकि हूँ उत्तमपुरुष–एकवचन की क्रिया है। परन्तु अन्यत्र कत घ्या निर्देश करना पड़े गा; क्योंकि अन्यपुरुष तथा मध्यमपुरुष के एकवचन में समान रूप से हैं रहता है । “तू पढ़ता हैं' ‘लड़की पढ़ती है । 'है' एकरस । हाँ, मध्यमपुरुष के बहुवचन में ‘हो' ब्ध होता है। वहाँ छत का निर्देश अनावश्यक है। पुस्तक पढ़ते हो, तो