पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४४९

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( ४०४ ) स्पष्ट पद्धति भी हिन्दी ने सामने रखी । जन्न क्रिया की नियचि निश्चित या असन्दिग्ध होती है, तो हिन्दी में ‘सिद्ध' क्रिया-'कृदन्त क्रिया' । “राम जाता है’ ‘गोविन्द पढ़ता हैं ऋदि में क्रिया निश्चित है। क्रिया के होने में कोई सन्देह नहीं; इस लिए सिद्ध' रूप, कृदन्त-रूप--‘जाता-जाती-पढ़ता ढत अादि । “है' तिरुन्त तो काल-सूचनार्थं भर सहायक है और इस से क्रिया की निश्चिति और भी स्पष्ट हो जाती है । सो, वर्तमान काल में, या स्थिति के सामान्य निरूपण में क्रिया का ‘सिद्ध रूप ही हिन्दी ने रखा हैं—'कृदन्त । | भूत काल की क्रिया भी ‘सिद्ध होती है, निश्चित होती है। राम काशी या' में ‘गया' क्रिया का ‘सिद्ध रूप है। राम का फाशी चला जाना पक्की बात है । वह चला गया है, यह सिद्ध है; स्पष्ट है। इसी लिए क्रिया के 'सिद्ध' यानी 'कृदन्त रूप का प्रयोग है--राम गया, लड़के गए, लड़की गई । यानी भूतकाल की तथा वर्तमान की क्रिया सिद्ध' । उस का हिन्दी में प्रयोग कृदन्त' । परन्तु जो क्रिया साध्य हो, जिस की निष्पत्ति निश्चित न हो, उस का ‘सिद्ध’---रूप में प्रयोग न होगा | उसका कृदन्त-प्रयोग हिन्दी नहीं करती ! 'साध्य तो सदा अनिश्चित होता ही है। | ‘तु तुस्तक पढ़' यहाँ ‘पढ़' आज्ञा है । आज्ञा में क्रिया की कोई निश्चित नहीं है । पता नहीं, वह पहें पढ़े गा कि नहीं, जिसे आज्ञा दी गई है । ‘पढ़ना यहाँ ‘सिद्ध नहीं हैं, निश्चित नहीं है। इसी लिए हिन्दी ने यहाँ सिद्ध ( कृदन्त ) प्रयोग पसन्द नहीं किया । अाज्ञा की क्रिया साध्य', यानी तिङन्त रूप से रहती है-राम, पुस्तक पढ़-शकुन्तला, पुस्तक पढ़' उभयत्र समान “पढ़' । संस्कृत “पठ” की तरह । बहुवचन में भी--‘लड़को, पुस्तक पड़ो'-लड़कियो, पुस्तक पढ़ो' साध्य ( तिङन्त } क्रिया है । कर्ता के अनु- सार लिङ्ग-व्यवस्था नहीं हैं। बह सब ‘सिद्ध क्रिया में होता है । | 'मनुष्य कभी भी पर-वंचना न करे लड़की कभी भी गन्दे उपन्यास न पड़े। । ये विधि के क्रिया-पद मी साध्य हैं, तिङन्त हैं। पुलिङ्ग -स्त्रीलिङ्ग में समान-रूप रस्त्रते हैं । यहाँ भी क्रिया ‘सिद्ध नहीं है, निश्चित नहीं है ! पता नहीं, जिसके लिए विधि की गई है, वह उसे माने' गा कि नहीं ! क्रिया साध्या-