पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४५०

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वस्था में है, अनिश्चित स्थिति में हैं ! इसी लिए सिंद्ध' ( कृदन्त } प्रयोग हिन्दी विधि में नहीं करती; ‘साध्य { तिङन्त } प्रयोग करती है—राम वेद पढे’ ‘सीता वेद पढे । उभयत्र ‘पढ़े' ।। ‘राम आए, तो काम बने सम्भावना है । सम्भावना तो सदा ही अनिश्चयात्मक होती है | इसी लिए हिन्दी में ‘साध्य' ( तिङन्त ) प्रयोग---‘राम श्राए, या सीता आए; कोई अाए ।' सिद्ध” ( कृदन्त ) प्रयोग नहीं है।

  • भगवान तुम्हें यशस्वी करें?

आशीर्वाद है } यशस्वी करना, न झरना, भगवान् के इथ में है । आशीर्वाद है; पर पता नहीं, वैसा हो गा कि नहीं ! इसी लिए हिन्दी में क्रिया के साध्ध' ( तिङन्त ) रूप का प्रयोग है-*भगवान् करें, भगवती करें•••

  • अध्यापक सब मेरे यहाँ कल पधारें

'अध्यापिकाएँ सब मेरे यहाँ कल पधारें प्रार्थना या निमंत्रण भी ‘साध्य हैं । प्रार्थना है, निमंत्रण है । पधारेंगे बैं लोग, या नहीं, कोई नहीं जानता } पक्की बात नहीं। इसी लिए क्रिया का ‘साध्य' ( तिङन्त } रूप चलता है। निमंत्रण-प्रार्थना में कृदन्त १ ‘सिद्ध ) रूप नहीं । भविध्युत् तो सदा ही अनिश्चित है ! और, श्राज्ञा, विधि, अशीर्वाद, निमंत्रण आदि की क्रियाएँ भी भविष्यत् की ही हैं; इस लिए साध्य' यानी तिङन्त' रूप चलते हैं। साधारणतः निश्चय हो कि म जरूर क्रिया करे गा; और फिर भी सम्भव है कि वह न करे ! मैं अपने ही लिए निश्चय किए बैठा हूँ कि कल- कच्चे जाना पक्का है; पर भविष्यत् की कौन जाने, क्या उलझे लग जाए और यात्रा रुक जाए ! तो, भबिष्यत् अनिश्चित हैं, सिद्ध नहीं है; इस लिए क्रिया का रूप असाध्य रहे गा; परन्तु चूंकि बात करते समय मन में वैसा निश्चय है; इस लिए 'सिद्ध-अवस्था की झलक--