पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४५१

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( ४०६ ) राम कलकचे जाए गा सीता कलकत्ते जाएगी सीता, तू कल से स्कूल जाए यी राम, तु कल से स्कूल जाएगा जाए' रूप ‘साथ्य' ( तिङन्त ) है; क्योंकि भविष्यत् को कोई भरोसा नहीं । परन्तु वैसे मन में निश्चय है; इस लिए ‘गा'-गी' सिद्धता की झलक । ' ' 'ग' इन सिद्ध’ शब्दों से क्रिया का निश्चय प्रकट होता है; पर फिर भी भविष्यत् है ! इसी लिए मुख्य क्रिया 'साध्य’ (तिङन्त) रूप से है- जाए'-( गा, गी)। बड़ी ही कलात्मक तथा वैज्ञानिक व्यवस्था है । विधि, शाज्ञा, प्रार्थना आदि भी भविष्यत् की ही चीजें हैं; पर वहाँ उतना निश्चय नहीं। इसी लिए ‘सिद्ध'-अवस्था का कोई चिह्न नहीं लगता । “पढ़े गा’-पढ़े गी” आदि में बात दूसरी है। पढ़े-करे' आदि विधि-आशीर्वाद आदि के ही रूपों में ‘गा’ का प्रयोग कर देने से क्रिया की निष्पत्ति में निश्चय प्रकट होने लगता है और तब ये ‘भविष्यत् काल’ की क्रियाएँ कहलाने लगती हैं । हैं। विधि आदि की भी क्रियाएँ भविष्यत् की-‘रास जाए'। राम न गया है, न जा रहा है; जाने की विधि या आज्ञा है—वह आगे जाए गा ! यों श्राज्ञा, विधि, प्रार्थना, निमंत्रण आदि की क्रियाएँ भी भविष्यत् की ही हैं । भविष्यत् सन्दिग्ध है। इसी लिए यहाँ ‘सिद्ध’--प्रयोग हिन्दी ने नहीं रखे । जब निश्चयात्मक 'राम कलकवे जाए गा’ अादि की ‘जाए गा' जैसी क्रियाएँ ‘भविषत् काल' की कहलाने लगीं, तो विधि’ श्राज्ञा’ आदि की क्रियाएँ अन्यथा समझी जाने लगीं। भविष्यत्-रूप न देख कर केवल ‘विधि या ‘ज्ञा' आदि की क्रियाएँ वे कहलाने लगीं । भविष्यत् के ही ‘विधि श्रादि विशेष भेद समझिए। बिधि या आज्ञा आदि की प्रधानता होने से ये नाम | विशेअपदसन्निधाने सामान्थवाचकपदानf तदन्यपरत्वम्-विशेष- वाचक ( ‘विधि' आदि) पदों की उपस्थिति में सामान्य--वाचक ( भवि- ध्यत् काल) का प्रयोग उन ( विधि, अशा आदि भविष्यत्-विशेष स्थलों ) से अतिरिक्त स्थल में होता है-राम जाए शा' आदि निश्चयात्मक स्थिति में । “कालु प्रकरण में सब स्पष्ट हो ।