पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४५२

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( ४०७ ) इस तरह संस्कृत के 'सिद्ध' तथा 'साध्य क्रिया--पदों की यहाँ एक सुव्य- वस्थित विधि है । क्रिया की निश्चयात्मक स्थिति में 'सिद्ध' (कृदन्त) प्रयोग- “म जाता है... “पढ़ता हैराम गया था---पढ़ता था? अादि । और क्रिया की साध्यावस्था में तिङन्त-प्रयोय-राम,काम करे-सीता काम करे श्रादि । कैसी वैज्ञानिक और कलात्मक भाषा है। हिन्दी धातुओं के प्रत्यय पूर्व विवेचन से स्पष्ट हुआ कि हिन्दी धातुओं में प्रत्यय-कल्पना की आधार क्या है । यहाँ स्पष्टतः क्रिया के दो चर्ग हैं। एक में लिङ्ग-भेद से रूप-भेद होता है, दूसरे में नहीं । एक को 'कृदन्त' कहे गे, दूसरे को 'तिंन्त' । कृदन्त क्रियाओं का बाहुल्य है। इस की कारण सरलता भी है। तिङन्त क्रिया के रूप बहुत जटिल हैं। रामः कार्यम् अकरोत्-राम ने काम किया अहम् फार्थम् अकरवम्-मैंने काम किया त्वम् कार्यम् अकरोः-तू ने काम किया वयम् कार्यम् अकुर्म-हम ने काम किया यूयम् कार्थम् अकुरुत-तुम ने काम किया। सब ने काम किया। हिन्दी का सरले मार्ग है। परन्तु संस्कृत की विङन्त क्रियाओं में कितनी भिन्नता है ? हिन्दी की कृदन्त-क्रिया में सब जगह ‘किया और वहाँ-अकरोत्, अफरवम्, श्रकरोः, अकुर्म, अकुरुत श्रादि भेद ! संस्कृत में कृदन्त क्रियाएँ भी हैं, और बहुत सरल हैं- रामेण कार्यम् कृतम्-राम ने काम किया मया कार्यम् कृतम्-मैं ने काम किया त्वया कार्यम् कृतम्-तू ने काम किया अस्माभिः कार्यम् कृत-इम ने काम किया युष्माभिः कार्यम् कृतम्-तुम ने काम किया है। सर्वत्र ‘कृतम्’ और ‘किया । इसी सरलता के कारण हिन्दी ने कृदन्त- पद्धति स्वीकार क्री; परन्तु एक विशेषता के साथ । संस्कृत में