पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४५३

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{ ४०८ ) फर्ता-कारक के कितने भेद हैं ! हिन्दी में सर्वत्र 'ने' लगा देने से बेड़ा पार- राम ने, तू ने, हम ने, सब ने । थइ 'ने' विभक्ति ‘बालकेन' से 'इम' अलय कर के बना ली ! वर्ण-व्यत्यय और गुण-सन्धि । संस्कृत ‘कृतम्' कृदन्त क्रिया में 'त' प्रत्यय है, हिन्दी ‘किया' में 'य' प्रत्यय है । यह य' प्रत्यय संस्कृत के 'त' का ही रूपान्तर है । रूपान्तर इस लिए कि झरती हैं। अादि वर्तमान में “त' प्रत्यय विद्यमान है। श्रर्थ की ( काल की ) स्पष्टता अपेक्षित है। ‘सोया है और सोता है' में अन्तर है। इस अन्तर के ही लिए भूतकालिक “त’ को ‘य' रूप भिला। ‘कृत’ को ‘किय’ हो गया और युविभक्ति-‘किया । फिर इसी ‘य' को स्वतंत्र प्रत्यय भान कर गया ‘सोया' आदि भी । वर्तमान काल में जाता है और भूतकाल में गया है। यानी “जा' धातु की जगह भूतकाल में (गम् की) 'ग' चलता है । गतः से गया’ समझिए । 'जा' संस्कृत की ‘या’ धातु का रूपान्तर है | वर्तमान काल में जा' और भूतकाल में ‘श' | 'ग' का प्रयोग वर्तमान काल में इस लिए नहीं होता कि 'गा' एक अन्य धातु है-राम गाता है। यह ‘ग' संस्कृत धारयति' को पूश है । गत्यर्थक 'ग' का प्रयोग वर्तमान काल में ‘गाता है' ही हो सकता था, ‘गता' हैं' नहीं; क्योकि हिन्दी में वर्तमान काल की कोई भी क्रिया 'लघु’ नहीं है । श’ को दीर्घ कर देने पर अन्य धातु को भ्रम हो सकता था। इस लि८ वर्तमान में जा' और भूतकाल में 'ग' की व्यवस्था है। संस्कृत में भी देखा जाता है---‘असू' को भूतकाल में ‘भू' को 'आदेश'। यानी भूतकाल में ‘असू’ की जगह ‘भू' चलती है । अन्य कई धातुओं में भी यही व्यवस्था है। ब्रजभाषा तथा श्रवधी आदि में 'हो' धातु को भूतकाल में भ’ आदेश हो जाता है। ‘भोर मयो’ ‘भ भिनसारा' । यौं अनेक तरह से धातु-प्रत्यय की व्यवस्था हुई है। आगे के प्रकरणों में खुलासा हो जाए गा । ‘वाच्य-विवेचन क्रिया ‘भाव’ रूप होती है। उस में अपना न कोई लिङ्ग है, न पुरुष है और न 'वचन' हैं ! पढ़ना एक क्रिया है। उस क्रिया का वाचक यह शब्द है । यहाँ आप ‘पढ़ना' शब्द पुल्लिङ्ग देख रहे हैं, जो औसर्गिक है । शब्द जब बोला जाएगा, तो कोई न कोई उस का रूप हो गा ही। संस्कृत में नपुंसक लिङ्ग औत्सर्गिक है। जब लिङ्ग-विवक्षा न हो; तो (सामान्यतः)