पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४५५

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{ ४१० ) उदाहरणों में क्रिया के उत्तमपुरुष हूँ और मध्यमपुरुष हो । वचन भी कर्ता के अनुसार (एकवचन और बहुवचन ) हैं । सकर्मक क्रिया में भी लड़का पुस्तक पढ़ता है। लड़की वेद पढ़ती है। लड़के पुस्तक पढ़ते हैं। लड़का पढ़ता है। ‘पढ़त' कृदन्त है, कर्तृवाच्य । “लड़की के अनुसार ‘पढ़ती कृदन्त, कर्तृवाच्ये । “है' तिङन्त क्रिया है, कर्तृवाच्य ही । कर्ता ( ‘लड़का' ) के अनुसार प्रथमपुरुष, एकवचन । यही बात दूसरे उदाहरण में है। तीसरे उदाहरण में कर्जा बहुवचन है --‘लड़के' । पुंस्त्व और बहुवचन क्रिया में भी है---“पढ़ते'। तिङन्त क्रिया में फुर्ती के अनुसार अन्य पुरुष, बहुवचन हैं । यो, वर्तमान काल में क्रिया के दोनो अंश कर्तृवाच्य हैं । ‘लड़का पुस्तक पढ़ता है' में कर्म ( पुस्तक ) स्त्रीलिङ्ग है, जिस से क्रिया को कोई मतलब नहीं । लड़की वेद पढ़ती है' में वेद घर्म पुल्लिङ्ग है; पर क्रिया स्त्रीलिङ्ग है-लड़की के अनुसार ‘पढ़ती । शौर--- लड़का पड़ता है—लड़के पढ़ते हैं। मैं पढ़ता हूँ---हम पढ़ते हैं। तु पढ़ती है तुम पढ़ती हो इन उदाहरणों में 'वचन' कर्ता के अनुसार ई-कृदन्त-तिङन्त दोनो खण्ड में । कृदन्ता--अंशों में पुल्लिङ्ग-स्त्रीलिङ्ग भी कर्ता के अनुसार हैं।

  • अहं पठामि' सुन कर श्राप यह नहीं कह सकते कि फत पुल्लिङ्ग है, या स्त्री

लिङ्ग ! त्वं पठसि' में भी यही बात है। परन्तु मैं पढ़ता हूँ और तुम पढ़ती हो' में क्रिया--रूप से कर्ता का पुंस्त्व और स्त्रीत्व साफ है । *पढ़ती हूँ कहने से ‘पुरुष भी स्पष्ट है--उत्तमपुरुष, एकवचन ।। संस्कृत में वर्तमान काल की क्रिया वायु--भेद भी रखती हैं। अकर्मक क्रियाएँ भाववाच्य भी हो सकती हैं और सकर्मक कर्मवाच्य भी---- बालकाः तिष्ठन्ति-बालकैः स्यीयते । | बालकाः ग्रन्थं पठन्ति---बालकैः ग्रन्थः पश्यते उभयविध प्रयोग होते-चलते हैं । अंग्रेजी आदि भाषाओं में भी यही । स्थिति है---कर्तृवाच्य तथा कर्मवाच्य प्रयोग वर्तमान काल में होते हैं । परन्तु