पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४५७

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( ४१२ ) इन्हें भी शक्ति-निषेत्र में भाववाच्यता मिल जाए गी-- लड़के से सोया नहीं जाए गा लड़कों से सोया नहीं जाएगा लड़की से सोया नहीं जाए गए लड़कियों से सोया नहीं जाएगा। दर्द आदि के कारण ‘सोया नहीं जाएगा। इसी तरह ‘रोया नहीं जाए गा’ ‘उठा नहीं जाए गा' अदि प्रयोग समझिए। शक्ति--विधान में भी-'यह काम सुशीला से ही हो गा'। 'काम' कर्म है यहाँ; ‘सुशीला से ऋर्ता-कारक । हम आगे ‘तिङन्त' तथा 'कृदन्त' शीर्षकों में जो कुछ लिखेंगे, उस से

  • बाच्य' और भी स्पष्ट हो जाएँगे ।

हिन्दी की तिङन्त क्रियाएँ जैसा कि पहले कई जगह निर्देश किया गया है, हिन्दी-क्रियाओं की गति त्रिधा है । इस ‘त्रिपथगा' की एक धारा तिङन्त है, दूसरी कृदन्त और तीसरी संयुक्त–‘तिङन्त-कृदन्त' या ‘कृदन्त-तिङन्त’। विधि, आदेश, प्रार्थना, प्रश्न आदि की व्यंजना हिन्दी में तिङन्त क्रियाओं से होती है- राम वेद पढ़े, आप ऐसा न करें, मैं जाऊँ ? अादि । इन क्रियाओं पर कर्ता या कर्म के लिङ्ग-भेद का कोई असर नहीं पड़ता–राम वेद पढे, सीता वेद पढे । सार्थक ‘ह' धातु से वर्तमानकालिक 'इ' प्रत्यय होता है । सम्भावना शुभाशंसा आदि की व्यंजना ‘हो' से होती है; ‘ह से नहीं । वर्तमान कालिक यह 'इ' प्रत्यय केवल 'ह' से होता है। अन्य सब धातुओं का काम भी इसी से चलता है-“करता हैं' ‘पढ़ता है। मध्यमपुरुष के बहुवचन में 'g' को 'उ' हो जाता है और गुण-सन्धि हो कर 'हो'–“तुम बड़े चतुर हो । यहाँ “हो” “ह' का रूप है; 'हो' धातु का नहीं । यह 'इ' वर्तमान का प्रत्यय अन्य किसी भी धातु से होता ही नहीं है ! उत्तम पुरुष के एकवचन में 'इ' को ऊँ हो जाता है और धातु के 'अ' का लोप हो जाता हैं-हूँ। मैं यहाँ हूँ, तुम वहाँ हो' | ‘होऊँ। में ‘हो' धातु से सम्भावनार्थक पृथक् ॐ प्रत्यय है। वर्तमान “ऊँ से