पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४५८

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( ४१३ ) यह एकदम अलग चीज है। *पढ़ता हूँ वर्तमानकालिक 'इ' का रूपान्तर है। राम है, तू है, लड़की है, लड़की है | बहुवचन बनाने के लिए को अनुनासिक कर देते हैं—लड़के हैं, लड़कियाँ हैं, हम हैं। संस्कृत में ‘न्' से बहुवचन बनता है; हिन्दी में स्वर को ही अनुनासिक कर देते हैं । पठति'–पढ़ता है और पठन्ति’----पढ़ते हैं । क्रिया का पूर्वांश कृदन्त है; इस लिए वचन' संज्ञा की तरह-पढ़ता’ एकवचन और ‘पढ़ते बहुवचन । यो बहुत सी मार्ग है-- १—वह है, तू है, राम है, लड़की है। २-वे हैं, सब हैं, लड़के हैं, लड़कियाँ हैं ३--तुम हो और मैं हूँ। कुरुजनपद में कृदन्त क्रिया का इतना जोर हैं कि 'है' के आगे भी कृदन्त--प्रत्यय 'ग' जोड़ कर लड़का चतुर है रा लड़की चतुर है गी लेके चतुर हैं ये यों बोलते हैं। कुरुजनपद के पूर्व में मुरादाबाद की ओर भी है गा”

  • हैं ग’ आप सुन सकते हैं । परन्तु राष्ट्रभाषा ने यह ‘है गा-है गी' पसन्द

नहीं किया ! ‘हगाहगी' का सा आभास मिलता है ! हाँ, भविष्यत् काल में 'हो' धातु से अवश्य 'ग' हो गा--लड़का हो गा, लड़की हो मी, लड़के हौं गे। काल-भेद के लिए प्रत्यय-भेद चाहिए ही } भविष्यत् का 'ग' वर्त- मान में लगा देना कुछ भला नहीं । भविष्य में क्रिया की निश्चिति प्रकट करने के लिए 'ग' का प्रयोग होता है। वर्तमान तो स्वतः निश्चित है। परन्तु जनपदीय बोलियों में साहित्यिक ‘मीन-मेख नहीं चलता ! वहाँ तो सरल से सरलतर मार्ग चलता है। लड़का है' की अपेक्षा लड़का है गा’ जम गया, चल पड़ा । लङकी पढ़ती ही की ही तरह ‘लड़की पढ़ती है गी’ भी वहाँ गति पर हैं । परन्तु राष्ट्र-भाषा में श’ भविष्यत्-सम्भावना श्रादि की चीज है । 'पढ़े, तब है' में बड़े से क्रिया की निश्चित नहीं । पता नहीं, पढ़े गा कि नहीं ! इस ‘पड़े के आगे 'ग' ले दें, तो-राइ पढे गा और