पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४५९

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सुशीला लिखे गी' में पढ़ने-लिखने का निश्चय है । बोलने वाला अपने मन में निश्चय किए है कि रास पढ़े सा और सुशीला लिखे गी । राम सोता हो, तब } सोता हो' संभावना है। निश्चय नहीं कि राम सोता ही हो गए ! परन्तु ‘ग लगा देने से क्रिया की निश्चित प्रकट हो ग-

  • राम सोता हो गा' } है तो संभावना ही; पर ‘ग' के प्रयोग से निश्चय

की ओर झुकाव है । भविष्यत् सन्दिग्ध होता है और संभावना में दो सन्देह है ही; इस लिए निश्चयार्थ 'ए' का प्रयोग । वर्तमान में क्या सन्देह हैं । विधि आदि का इ' प्रत्यय इ-भिन्न धातुओं से विधि, आशा, शुभाशंसा, अशुभ कामना ( शाप ) सम्भावना आदि प्रकट करने के लिए एक पृथक् ‘इ' प्रत्यय होता है-- | राम वेद पढे, सुशीला भी वेद पढ़े ‘पढ़े' में लिङ्ग-भेद से कोई रूप-भेद नहीं है। बहुवचन में ‘ए’ को अनुनासिक कर देते हैं- लड़के खेलें और लड़कियाँ भी खेलें उभयत्र खेलें। यह भी 'इ' मध्यम पुरुष के बहुवचन में 'उ' हो जाती - है और गुण-सन्धि भी--- तुम पढ़ो, खेलो और काम करो पढ़, खेल तथा कर धातुओं के अन्त्य ‘अ’ के साथ प्रत्यय के 'उ' सी गुण-सन्धि। उत्तमपुरुष के एकवचन में इ' को ऊँ हो जाता है- मैं पढ़ें था कोई और काम करू घातु के अन्य ‘अ’ का लोप ! मध्यम पुरुष के एकवचन में 'इ' का लोप हो जाता है- तू पढ़ भी, दूसरा काम भी कर यह ‘पढ़ स्पष्टतः 'ठ' की प्रतिरूप हैं इसी लाइन पर फिर सभी कर, उडू, सई श्रादि ।