पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४६०

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और- तू कपड़े धो, सो मत, उसे मत बृ श्रादि भी । 'इ' का लोप पुरानी परम्परा की याद । 'पठति--पढ़ता है और “पठ”–अढ़।। लड़की पढ़े लड़के पढ़े तू पढ़ तुम पढ़ो | 'मैं पहूँ और इस पड़े यानी अन्य पुरुष का बहुवचन और उत्तम पुरुष का बहुवचन रूप एफ़- सा पढ़े' होता है। पुरुष-भिमता प्रतीत नहीं होती। इसी लिए कर्तृनिर्देश जरूरी होता है । केवल २ढ़े” कहने से मतलब साफ न हो या ! परन्तु क्या पढ् ?' कहने से मैं कहने की आवश्यकता नहीं । तुरन्त जा और उन से सन्न कह दे यहाँ ‘तू' की स्पष्टतः स्थापना जरूरी नहीं हैं। ज्ञाझो और काम करो' कहने से ही तुम' कर्ता मालूम हो जाता है। पढ़े अन्य पुरुष एक वचन में तो कृत का निर्देश करना ही हो गा; जैसे “पठेत् मैं । अन्यथा यह कैसे ज्ञात हो गा कि विधि यो आज्ञा किसके लिए है ? अस्>अ> ) 'ह' धातु से यह 'इ' प्रत्यर्थ नहीं होता, अस्तित्व निश्चित होता है ! हाँ, “हो” धातु से अवश्य यह प्रत्यय होता है ।। इस इ' प्रत्यय से कोई काल-विशेष प्रतीत नहीं होता । “सत्यं वदेत् - सत्य बोलना चाहिए । यहाँ यह सर्वकालिक विधि है; फिर भी विधि होती भविष्यत् के ही लिए है; इस लिए ‘साध्य' प्रयोग । 'सच बोलना चाहिए भी विधि है; परन्तु क्रिया का यह पृथक् रूय हैं। प्रकृत 'इ' प्रत्यय का प्रया

  • चाहिए' में नहीं है । इस का खुलासा श्राचे हो गई । “सत्यं वदेत् तथा स्य

बोलना चाहिए' में कर्ता का निर्देश नहीं हैं। तब पूरा मतलब कैसे निकले १ मतलब तो निकल आता है-“मनुष्य को सत्य बोलना चाहिए। परन्तु यह कैसे निकला ? अन्यपुरुष की क्रिया में कद का निर्णय कैसे हो गया है यह एक प्रश्न हो सकता है ।। | उत्तर स्पष्ट है । ‘अर्थश्चेदवगतः किं शब्देन १ मतलब निकल गया, तो फिर उसके लिए शब्द का प्रयोग व्यर्थ ! ‘सत्य बोलना चाहिए यह विधि मनुष्य के ही लिए हो सकती हैं--पशु-पक्षियों के लिए नहीं है मनुष्य-मात्र के लिए विधि है; इसी लिए सामान्य निर्देश; इसी लिए स्पष्ट प्रतिपत्ति और