पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४६१

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इसी लिए पृथक् कर्ता का निर्देश नहीं। ‘राम ने पुष्प की वर्षा की' से कम ( पुष्प ) इट्टा लें, तो अर्थ स्पष्ट न हो गी | रुपयों की वर्षा की, या और किसी चीज क्वी; कुछ न मालूम हो गा । इसी लिए कर्म का निर्देश अविश्यक है। परन्तु ‘मेध बरसता है' में 'पानी' ( कर्म ) बतलाना निरर्थक है। मेघ पानी ही बरसता है, और कुछ नहीं । इसी तरह ‘सत्यं वदेत् सच बोलना चाहिए' आदि में कर्ता का निर्देश अवश्यक नहीं। परन्तु “देखे’ या देखना चाहिए' कहने से कुछ न मालूम हो गा कि कौन देखे, किसे देखे ! यहाँ कृत और फर्म अवश्य स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट होने चाहिए। ऊपर अकारान्त “पढ़ आदि धातुओं के 'इ'---प्रत्ययान्त रूपों की चर्चा हुई है। प्राकारान्त, ईकारान्त, ऊकारान्त, ओकारान्त आदि धातुओं के रूपों में नाममात्र को भिन्नता है। अकारान्त धातुओं का अन्त्य 'अ' प्रत्यय

  • इ' से मिल कर ( प्रथमपुरुष-एकवचन ) में ‘पढ़े' करे’ ‘उडे' जैसे रूप

ग्रहण करता है। परन्तु अन्य धातुओं से परे यह 'इ' अकेले ही ‘ए’ बन जाती है और धातु ( के स्वर ) से सट कर- लड़का जाए-लड़के जाएँ, लड़की जाए-लड़कियाँ जाएँ लड़का झुएलड़के कुएँ, लड़की छुए--लड़कियाँ छुएँ । लड़का सोएलड़के सोएँ, लड़की सोए-लड़कियाँ सोएँ यों रूप होते हैं । छु' धातु का स्वर ह्रस्व हो जाता है । इकारान्त धातुओं के रूप देखने से पता चलता है कि ‘इय्' भी यहाँ विकल्प से होता ‘राम पिये, पिए, पीए'। यों त्रिधा प्रयोग देखे जाते हैं । इसी तरह- सिये, सिए, सीए जिये, लिए, जीए त्रिविध प्रयोग है। यहाँ स्पष्टतः धातु के ‘ई’ को ‘इय् हो गया है और फिर (ए' परे होने के कारण ) य’ को वैकल्पिक लोप--जिए-जिथे । 'इय् न होने पर बीए; पीए, सी श्रादि साफ ही हैं। यहाँ एक बात साफ दिखाई देती है । गये-गए' आदि की तरह, जिये- जिए' श्रादि में थे का वैकल्पिक लोप है; परन्तु ‘किरायेदार' आदि को