पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४६२

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  • किराएदार' जैसा नहीं होता । ‘किराया' से 'दार' प्रत्यय होने पर (प्रकृति के

अन्त्य ‘अ’ को ‘ए’ हो जाता है--‘किरायेदार' । यहाँ भी यू' की स्पष्ट श्रुति नहीं है, वैकल्पिक लोप को अवकाश है; परन्तु होता नहीं है। हाँ “पायेदार’ और ‘पाएदार' ये दोनो प्रयोग होते हैं। क्या कारण ! ऐसा जान पड़ता है कि हिन्दी की स्पष्ट प्रतिपत्ति देने की प्रवृतिं ही यहाँ भी कारण है । सोचने से जान पड़ेगा कि प्रत्यय के ही यु’ को उस तर वैकल्पिक लोप होता है; या फिर 'देश' या 'वविझार' के यू' झा | गई गए' आदि में प्रत्यय के यू' का लोप है । प्रत्यय का क्षेत्र बहुत व्यापक होता है। इस लिए, अति प्रसिद्धि से, लब समझ में आ जाता हैं । लइके गर्’ सीत गई' कहने से साफ पता लग जाता हैं कि ये भया' के रूप हैं । यहाँ तक %ि लोप के अनन्तर सव-दीर्ष एकादेश' हो कर अड़ रूप एकदम बदए । जाता है, तब भी समझने में कोई दिक्कत नहीं होती-लड़के ने दवा नहीं पी है और पुस्तक ले ली हैं? यहाँ 'पिया' का 'पी' और 'लिया' का ल’ रूप सब समझ लेते हैं। यहाँ लोप और सन्धि नित्य' हैं----अनिवार्य हैं; वैङ्कल्पिक नहीं हैं। कारण, प्रत्यय प्रसिद्ध है; इस लिए सब साफ समझ लेते हैं ।

  • पाएदार' में पाया का थ्’ ‘श्रादेश' या वर्णविफॉर है । पाद’ के द”

को थ' हो कर ऍविभक्ति है । पशुओं के चार पदें होते हैं । यहाँ ‘द' झो अनुनासिक 'बँ” । एक सेर के चतुर्थांश को पाव' कहते हैं। यहाँ ( तौल- विशेष के लिए ) निरनुनासिक ‘व' । पैसा' भी पाय-सुर' दिखाई देता हैं। पाय पाइ>>'पै'। एक आने के चार पाद । चौथा पाद---‘पैसा । पाद'>‘पाय से भी छोटा हिस्सा–पाई। पैसे का तीसरा हिस्सा है। अल्पार्थक ई” और “य' को लोप | खाट के चार पाये या ‘पावे होते हैं। यहाँ विकल्प से 'व' और 'य'। जिस चीज का अाधार मजबूत होता है, वह टिकाऊ होती है---‘पाएदार' या 'पायेदार' । यहाँ ‘यू' को वैकल्पिक लोप; क्योंकि 'द' को 'आदेश' या वर्ण-विझार' से हुआ यह

  • य' है । वेदार नहीं होता, टिकाऊपन के अर्थ में । साधारण प्रयोग

मैं 'पावेदार पीढे बनवाने चाहिए, जिस से कि बैठने में सुभीता हो ।”