पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४६५

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( ४२० ) जा सकते हैं, क्योंकि ‘यू परम्परा-प्राप्त है और श्रुत ने होने से लोप भी ठीक है । परन्तु कीजिये' में ‘य्’ कैसे आ कूदा ? इस की श्रुति भी तो नहीं है। कीजियो मे ‘यू' श्रुत है-सदा रहे गा । कोई-कोई कहते हैं कि 'कीजिये न रहे पर, तो फिर' नदियाँ भी न रहे गा–'नदिअाँ हो जाए' गा; इस लिए कीजिये' ठीक है। समझ अपनी । 'नदियाँ में ‘इयु विकरण का यु' स्पष्ट श्रुत है; तब लेप क्यो हो गा ? कृदन्त क्रियाएँ हिन्दी में कृदन्त क्रियाएँ ही अधिक हैं। वर्तमान काले की सूबे की सब क्रियाएं कृदन्त हैं; सहायक क्रिया केवल ‘हैं' ही तिङन्त है---‘लड़का पढ़ता है लड़की पढ़ती है’ | भूत काल की भी सब क्रियाएँ कृदन्त हैं-'लड़का गया’ और ‘लड़की गई। ‘कृतम्' के ‘कृ’ को ‘किय’ रूप मिल जाता है । इसी य’ को हिन्दी ने भूतकाल का प्रत्यय मान लिया-पुंविभक्ति लगा कर क्रिया, आया, गया, सोया, सुलाया, पढाथ अादि। स्त्रीलिङ्ग मे---की, ली, आई-वी, गई--गयी, सोयी--सोई, सुलायी-सुलाई, पढ़ायी-पढ़ाई आदि। यहाँ सभी चीजों की पढ़ाई होती है क्या लिखाई हो रही हैं। 'तू तो दिखाई भी नही देता' इत्यादि प्रयोगों में “आई” कृदन्त भाववाचक प्रत्यय पृथक् चीज है । यहाँ पढ़ायी-लिखायी कर देना गलती है। पढ़ा, लिखा, उठा, बैठा श्रादि में भी ‘य' प्रत्यय है; लुप्त दशा में है । ‘कुरुजनपद से मिले हुए ‘कुरुजाङ्गल' ( करनाल- रोहतक आदि ) मे अछि भी ‘पळ्या' जैसे प्रयोग होते हैं। यानी धातु के ‘अ’ का लोप कर के प्रत्यय का संयोग । परन्तु “पढ्या’ ‘बैठ्या' आदि कर्णकर्कश शब्द' हैं । उच्चारण में भी सुखकर नहीं हैं। इस लिए अनेक स्वरवाली अकारान्त ( उठ, बैठ, पढ़, कर, मर श्रादि ) घातुश्चों से परे ‘अ’ को लोप हो जाता है । 'उठ य' में पुंविभक्ति---‘उठ या' । 'यू' का लोप-उठ +अ = ‘उठा। प्रत्यय का लोप होने पर भी पुंविभक्ति तो रहे गी ही। स्त्रीलिङ्ग में—“उठी' ।। आकारान्त धातुओं में ‘य' रईता ही है- आया, लाया, पाया, खाया आदि । ईकारान्त धातु को अन्त्य स्वर ह्रस्व हो जाता है- पानी पिया, कपड़ा सिधा, बहुत दिन जिया