पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४६७

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( ४२२ ) पूर्णतः संस्कृत का अनुकरण है। अन्तर केवल यह है कि संस्कृत में तृतीया विभक्ति के योग से विभिन्न शब्दों के बने रूप--भेदों में जो जटिलती हैं, वह हिन्दी में नहीं है। अकारान्त पुल्लिङ्ग 'बालक' का तृतीया के एकवचन में जो रूप बनता है, उस से श्रावश्यक अंश ले कर अपनी ने विभक्ति हिन्दी ने बना ली; और फिर सभी शब्दों में उसी का प्रयोग- सभी लिङ्ग-जचनों में निर्विशेष- सीतया ग्रन्थः पठितः-सीता से ग्रन्थ पढ़ा रामेण ग्रन्थः पठितः---राम ने ग्रन्थ पढ़ा अस्माभिः ग्रन्थः पठितः--हम ने ग्रन्थ पढ़ा युष्माभिः ग्रन्थः पठितः--तुम ने ग्रन्थ पढ़ा कर्म बहुवचन कर दें, तो क्रिया भी बहुवचन- बालकेन बालकाः दृष्टाः--लड़के ने लड़के देखे बालिका बालकाः दृष्टाः-लड़की ने ने लड़के देखें वया बालकाः दृष्टाः-तू ने लड़के देखे। कर्म स्त्रीलिङ्ग कर दें, तो क्रिया भी स्त्रीलिङ्ग-- बालकेने बालिका दृष्टा-लड़के ने लड़की देखी बालिकया बालिका दृष्टा-लड़की ने लड़की देखी । बालिकाभिः बालिका दृष्टा-लड़कियों ने लड़की देखी कितनी सरलता है ? सर्वत्र 'ने' कर्ता में । इस तरह सकर्मक धातुओं से भूतकालिक 'त' प्रत्यय ( संस्कृत में) ‘कर्मणि' होता है, उस के कर्मवाच्य प्रयोग होते हैं । हिन्दी के ‘य' की प्रयोग भी ऐसा ही है । गत्यर्थक सकर्मक : धातुओं से ‘त' प्रत्यय संस्कृत में कर्तरि' होता है; अर्थात् गत्यर्थक धातुओं के तु'-प्रत्ययान्त रूप ( फर्मवाच्य नु होकर ) कर्तृवाच्य होते हैं । यही स्थिति हिन्दी में है। ‘ज्ञाना'-'आना”