पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४६८

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अर्थवाली धातुओं से त' प्रत्यय ‘कर्दरि' होता है; यद्यपि चे सुकर्मक हैं । हिन्दी में भी ऐसी धातुओं से य’ प्रत्यय की यही स्थिति है- १–मः का गतः–१८ काशी गुया २-बालिका वृन्दावनं गता-लड़की वृन्दावन गई ३-यूयम् गृहमागताः---तुम घर आए ४---चयमप्याराहाः गृहमूहम भी घर आ गए प्रथम उदाहरण में कर्म (काशी) स्त्रीलिङ्ग है; परन्तु क्रिया कर्ता रामः ( राम ) के अनुसार पुल्लिङ्ग है----‘गतः'--'गया' ।। दूसरे उदाहरण में कतई ‘बालिका स्त्रीलिङ्ग है और इसी लिए किंवा ( शता'--‘गई ) स्त्रीलिङ्ग है । मुंस्कृत में वृन्दवनम्' के अनुसार नपुंसक लिङ्ग, न हिन्दी में 'वृन्दावन के अनुसार पुल्लिङ्ग) संस्कृत में अकर्मक धातुओं से कभी भावे' भी त' प्रत्यय होता है- भाववाच्य प्रयोग होते हैं । कृदन्त भाववाच्य क्रिया सदा नपुंसक लिङ्ग एकवचन संस्कृत में रहती है, हिन्दी में सदा पुल्लिङ्ग–एकवचन । ‘स्नान’ से नहाना' हैं- रामेण स्नातम्----राम ने नहाया बालिकाभिः स्नातम्-लड़कियों ने नहाया अस्माभिः स्नातम्,—इम ने नहाया युष्माभिः स्नात:-तुम ने नई भाववाच्य क्रिया का कर्ता संस्कृत में तृतीया-विभक्ति से श्रत है, हिन्दी में ‘ने के साथ | ‘कर्तरि प्रयोग भी इस के होते हैं - बालिकाः स्नातः-लड़कियाँ नहाई रामः स्नातः-राम नहाया वयं स्नाताः-हम नहाए यूयम् स्नाताः-तुम सुझाये