पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४७

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एक दिन में नहीं बन जाती है, साहित्य तो बहुत दूर की चीज है। सहस्त्रों वर्षों में मनुष्य ने शब्दों में अर्थ-संकेत करके व्यवहार की भाषा बना पाई । फिर लागे जैसे-जैसे ज्ञान तथा अनुभव बढ़ता गया, भाषा का भी विस्तार होता गया। धीरे-धीरे वह भी समर्थ आया, जब भाषा में साहित्य की सृष्टि होने लगी । बहुत आगे चल कर ऐसा उत्कृष्ट साहित्य प्रकट हुश्रा, जिसे अनन्त-शक्ति काल भी कवलित न कर सका और वह आज भी विश्व को अपने प्रकाश से अाश्चर्यचकित कर रहा है। विश्व का वह प्राचीनतम साहित्य है 'ऋग्वेद' । संसार भर के विद्वान् इस विषय में एकमत हैं कि ऋग्वेद मानव की प्राचीनतम साहित्य-रचना है। तो, साहित्य जहाँ बना, वहीं सभ्यता ने और उसे वहन करने वाली भापा ले सर्वप्रथम जन्म लिया । | वेद-रचना जिस भाषा में हुई, उसे आप साधारणतः ‘मूल भाषा' कह सकते हैं । ऋषियों ने मंत्र-चन की } ‘ऋषि' कहते हैं ‘द्रष्टा' को, जिसे सन् कुछ दिखाई दे । यहाँ ‘दिखाई दे वह साधारण चीज नहीं है, जो कि पामर से पामर जनों को ही नहीं, पशु-पक्षियों को भी प्राप्त है ! तब ऋषित्व क्या ? 'दर्शन' या ‘देखना वह, जो साधारण जनों से बहुत दूर की चीज है । प्राकृत ( साधारशा } जनों की समझ ही कित ! असाधारण ज्ञान रखने वाले सुकृत महामनीषियों ने हमें वेद-साक्ष्यि दिया । निश्चय ही साधारण ( प्राकृत ) केनों की अपेक्षा ऋषि (संस्कृत ) जनों की व्यवस्था में, रहन- सहन में, बोल-डाल में, सभी बातों में कुछ अन्तर समझा जा सकता है। फिर, साधारण बाल-चाल की भाषा में और साहित्य की भाषा में कुछ अन्तर श्रा ही जादा है। साहित्य-निर्माण के समय हम भाषा पर आधेक ध्यान देते हैं। उस में कुछ विचित्रता लाने का भी प्रयास करते हैं--कविदा में अलंकारों का उपयोग करते हैं। इन सब बातों का परिणाम यह होता है कि प्राकृत बनी की ( बोल-चाल की भाषा से साहित्य की भाषा में कुछ अन्तर आर ही। जाता है। हम लोग बाजार में जो हिन्दी बोलते हैं, वही साहित्यिक गोष्ठी में भी बोलते हैं। परन्तु यह भी कह सकते हैं कि बाजार की हिंन्दी कुछ और चीज है, साहित्यिक गोष्ठी में चलने वाली दूसरी चीज है । इसके आगे, जब इम साहित्य-निर्माण के लिए कलम उठाते हैं, तब वह साहित्यिक-गोष्ठी की भाषा कुछ और गम्भीर तथा परिष्कृत हो जाती है । तव बहुत सँभल सँभल झर पद-विन्यास होता है। अब उस बाजारू हिन्दी से इस साहित्यिक हिन्दी का मिलान कीलिए । पं० साखन लाल चतुर्वेदी, पं० बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'