पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४७२

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१ ४२७ ) ‘ह धातु से 'त' प्रत्यय हुआ और पुंविभक्ति---‘हता' । बहुवचन में ‘हत्ते और स्त्रीलिङ्ग में ‘हती’ | ब्रजभाषा में 'ओ' विभक्ति---‘एक राजा इतो' । कहीं “त' का लोप हो झर–‘एक राजा हा, एक रानी ही'। उनके चार पुत्र है” ( एक राजा था, एक रानी थी । उन के चार पुत्र थे' }। कहीं 'ह' की भी लोप–एक राजा श्रा, एक रानी ई । चार कुँवर ।' ऐसे प्रयोग जनपदीय बोलियों में होते हैं । परन्तु राष्ट्रभाषा में न इसा चलता है, न ‘हा' चलता है, न ‘श्रा' । अवश्य ही इस की उद्गम-भूमि ( कुरुजनपद } में 'हा' का प्रयोग अब भी होता हैं-एक राजा है, एक रानी ही, चार कुँवर हे उनके । कहीं 'हू का ही लोप हो जाता है—एक राजा ता, एक रानी ती; चार उन के बेटे ते ।' 'हा' की ही तरह “हो” ब्रज की लटक में है ! राजस्थानी में छे' (है। वर्तमान काल और ‘छो' भूतकाल । ये सूज उदइदीय प्रयोग हैं। राष्ट्रभाषा में “हता नहीं और न “छा झा हैं हाहाकार हैं ! यह वा-ब्ल्य से ‘त अ अ' । 'त' के आगे ‘अ’ का लोप और 'तु है अ मिल कर थ' । पुंविभक्ति की योर और सवदीर्घ एका देश’---था। इस था' की स्वतंत्र प्रयोग भी होती है और विभिन्न क्रियाओं का पूर्ण भूतकाल बनाने के लिए उनके साथ भी होता है । इ' धातु से 'इ' बर्तमानकालिक प्रत्यय हो कर हैं और पूर्णभूतकालिक 'त' हो कर था' ! 'g' तिङन्त प्रत्यय है; और यह ‘ते’ कृदन्त है, इतना अन्तर । राम है, सीता है। परन्तु ‘राम था, सीता थी। ‘ग भविष्यतू-का निश्चयार्थक प्रत्यय ‘ग? प्रत्यय भविष्यत् में निश्चय प्रकट करने के लिए होता है----अन्न होगा? क्यों कि वर्षा होगी। ' में पुंविभक्ति–ग' । बहुवचन मैं---‘होंगे। स्त्रीलिङ्ग में होगी 'ही' । थानी बहुवचन में ‘गा' का ' हो जाने पर भी प्रकृति के 'ओ' को अनुनासिक झरना पड़ता है । इस के बिना काम चल नहुँ सुकता । यदि से बहुवचन की प्रतीति मान कर “हो” को “' न भी किया जाता, तो स्त्रीलिङ्ग के चहुवचन में क्या होता है वहाँ बहुवचन की प्रतीति कैसे होती १ ‘पढ़ती होगी' एकवचन है। इसी से बहुवचन न मालूम होता । इसी लिए अनुनासिकृ-हो' । जैसे ही उसी तरह होंगे। यह बहुवचन-चिह्न विधि आदि के लिए विहित रूप से ही आया है । विधि, प्रेरणा, आज्ञा, आशीर्वाद आदि प्रकट झरने में क्रिया भविष्य की ही