पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४७४

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मिलता नहीं है। प्रत्युत अवधी आदि में ‘गा भूतकाल की क्रिया है--

  • गया' के 'यू' का लोप कर के---*सत जोक्न गा लंका-पारा' । भूते ही भवि-

ष्यत् कैसे बन जाएगा? सो, आज यह 'ग' एक कृदन्त प्रत्यय ही है-भविष्यत् प्रकट करने के लिए; वस्तुतः भविष्युत्-क्रिया की निष्पत्ति में निश्चिति प्रकट करने के लिए है। 'गा' में गाने की-सी छनि हैं। भविष्यत् के ही शत लोग गाते हैं- बड़ी- बढ़ी आशाएँ वाँध कर ! “यह हो गए, वह हो , मौज हो गई !' भूत तो निकल गया और वर्तमान से कोई सन्तुष्ट नहीं होता । भविष्य की कुल्पना में सब आनन्द लेते हैं । एक मनोरञ्जक संस्मरण है । सुन लीजिए । द्वितीय विश्वयुद्ध चल ही रह थी, जब कि मैं जेल से छूटने पर प्रयाग (हिन्दी साहिंत्य-सम्मेलन की अतिथि- शाला) में ठहर कर अपना ‘ब्रजभाषा का व्याकरण' लिस्त्र-छा रहा था । वह उस समय पं० काशीदत्त पाशडे एम० ए० रहवें थे। हिन्दी-विश्वस्त्रयाय के रजिस्ट्रार थे । पाण्डे जी मेरे दूर के रिश्तेदार के निक्कल अाए। वैसे 'चाय- चक्र' के कारण घनिष्ठता हो ही चुकी थी। एक दिन चाय पीते-पीते मैं ने पूछा---‘युद्ध में विजय किस की हो गी ? सब अपनी-अपनी ही हाँक रहे हैं।' पाण्डे जी ने हँस कर कहा -“वाजपेयी जी, जब मैं अमरावती में त्रिंसिपल था, तो एम० ए० के छात्रों को पढ़ाते समय कभी-कभी मनोरंजन की बा भी करता था। एक दिन मैं ने कहा--भाई अंग्रेजी के स’ ‘पी' ( P} अक्षर से प्रेजेंट भी हैं और ‘पस्ट' भी । फिर यह ‘फ्यूचर कैसे बेमेले श्रा कुदा ! यह भी ' से होता, तो कितना अच्छा रहता । मै इस बात पर लड़के हँस कर पूछते-'तो फिर क्या नाम अच्छा रहा फ्युदर' का ?' उन की इस जिज्ञासा का उदर मैं यों देता था--देखो, इस आने-वाले काल का नाम 'फ्यूचर' न कर के ब्लेजर किया जाता, तो बहुत अच्छु रहता | ‘प्लेजर'—खुश रखनेवाला है और कोई दूसरा काल ऐसा खुश करनेवाला है ही नहीं ! पाण्डेय जी ने ‘प्लेजर' शब्द ही बोला था, जहाँ तक मुझे याद पड़ता है । सुम्भव है, इस से मिलता-जुलतः कोई दूसरा शब्द हो ! हिन्दी के भी ‘भविष्यत्' नाम में प्लेजर' जैसी चीज तो नहीं; परन्तु क्रिया में गाने- बजाने का भाव लिए हुए *' प्रत्यय ‘गा धातु की याद दिलाता हैं । परन्तु