पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४७६

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( ४३१ } एक कलात्मक तथा वैज्ञानिक प्रवृत्ति हिन्दी ने यहाँ भी दिखाई है। हम पीछे क्रिया के सिद्ध' तथा 'साध्य रूपों की विवेचन कर आए हैं। ‘सिद्ध’--- निञ्चित और ‘साध्य’ अनिश्चित, भविष्य-क्रिया का मुख्य अंश साध्य है- ‘जाए (गा)---‘जाए ‘गी' आदि । 'ग' कृदन्त प्रत्यय हैं, निश्चय प्रकट करने के लिए, जो हो' से होता है, 'इ' से नहीं । 'इ' धातु अस्तित्व प्रकट करती है । ‘असू’ को वर्णव्यत्यय से ‘स’ और ‘स’ को ‘ह'। इसी में हि' प्रत्यय से इहि>हइ>हैं । “था' भी ‘हू से ही हैं-'सिद्ध क्रियः । परन्तु भविष्यत् का क्या भरोसा १ अस्तित्व अभी है ही नहीं। इसी लिए 'ग' प्रत्यय 'ह' से नहीं होता । 'हो' घातु अलग हैं। विधि छादि तथा साधारण भविष्यत् को अस्तित्व तो भविष्यत् की चीज हैं। इसी लिए संस्कृत में 'भविष्यत् भी ‘असू’ से नहीं, 'भू' से है। इसी लिए हिंन्दी का यह ‘श' प्रत्यय ‘ह’ (<स <स् ) से नहीं; ‘हो (<भू) से होता है ।। यह प्रत्यय कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य तथा भावाच्य, तीनो तरह की क्रियाओं में तदनुरूप प्रयुक्त होता हैं--- राम पुस्तक पढ़े गा ( कर्तरि प्रयोग ) राम को पुस्तक पढ़नी हो गी ( कर्मणि प्रयोग ) बुढ़िया से अब उठा न जाए गा ( भावे प्रयोग ) इसी तरह-आज आप जाइए या नहीं' श्रादि में गा’ भाववाच्य क्रिया के साथ हैं। कैसा भी कृत हो, यहाँ सदा ‘गा रहे गा । यहाँ एक विशेषता हैं। 'ब्रा' धातु से ‘इए' तिङन्तु और 'ग' कृदन्त प्रत्यये साथ-साथ हैं। तिङन्त भाववाच्य सदा अन्य पुरुष एकवचन रहता है और कृदन्त भाववाच्य सदा पुल्लिङ्ग–एकवचन 1 ‘आप जाए” भ लिन्त है; परन्तु कर्तृवाच्य । ‘बई जाए, लड़के जाएँ, आप जाएँ। परन्तु इश्' भाववाच्य हैं । श्राप ( कृत) बहुवचन है, परन्तु क्रिया एकवचन--‘जाइ' ! 'इ' प्रत्यय की अपेक्षा इस ‘इए' में अधिक श्रादर है। बड़े लोगों के लिङ् “इए' का ही प्रयोग होता है-“कीजिए, लीजिए, दीजिए' श्रादि इसी के रूप हैं। अनुनय- विनय या प्रार्थना आदि में इस का प्रयोग होता है। अनुनय-विनय या प्रार्थना आदि में किया भूबियोन्मुख है ही। भोजन की दिए। यानी भोजन अभी तक किया नहीं है, किया जा भी नहीं रहा है। करने के लिए प्रार्थना है। इसी इए' के साथ 'ग' प्रत्यय लगा कर मजित् काल की