पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४७७

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( ४३२ ) क्रिथा बना लेते हैं--‘भोजन यहीं कीजिए गा !’ कीजिए' में और कीजिए गा' में अन्तर है। इसी समय भोजन करने की प्रार्थना नहीं है, कुछ देर में कीजिए गा’ | परन्तु कीजिए' में तुरन्त भोजन करने के लिए प्रार्थना है। सो, “कीजिए' प्रार्थना को 'T' प्रत्यय भविष्य की--कुछ काल बाद के लिए--बना देता है । ‘इए' तिङन्त भाववाच्य अपनी चाल पर और रा’ कृदन्त भाववाच्य अपने रंग में । पूँजीपतियों के संगठन में भी हिन्दू पूँजीपति का अपना' सँग-ढंग और मुसलमान का अपना' तरीका ! परन्तु पूँजीवाद के बारे में समान । मजदूर-संगठन में यही स्थिति “हिन्दू और मुसलमान मजदूरों की समझिए। परन्तु मजदूरों की साधारण स्थिति उभयत्र ‘समान । सो, भाववाच्य क्रिया का मुख्य लक्षण है--सदा एकरस रहना। यह चीज सब जगह मिलेगी । तिङन्त भाववाच्य क्रिया सदा अन्यपुरुष एकवचन और कृदन्त भाववाच्य सदा पुल्लिङ्ग एकवचन । 'जा' धातु से ‘इए’ तिङन्त और 'ग' कृदन्त प्रत्यय एक साथ । ‘इए' तिङन्त भाववाच्य, उस के साथ 'ग' भी कृदन्त माववाच्य; परन्तु अपनी ( कृदन्त ) पद्धति पर ) सो, यह 'ग' प्रत्यय कर्तृवाच्य के साथ कर्तृवाच्य और कर्मवाच्य के साथ कर्मवाच्य रहता है। भाववाच्य के साथ भाववाच्यता ग्रहण कर लेता हैं । वस्तुतः 'है' तथा 'या' क्रियाओं को भी यही स्थिति है। लड़का है'--"लड़के हैं? कर्तृवाच्य | ‘पुस्तक राम ने पढ़ी है' पुस्तकें राम ने पढ़ी हैं कर्मवाच्य । हम ने तुम को बुलाया है' भाववाच्य; सदा है' । इसी तरह ‘लड़का था- ‘लड़के थे' कर्तृवाच्य । “म ने पुस्तक पढ़ी थी—पुस्तकें पढ़ी थीं' में कर्म- वाच्य । “हम ने तुम को बुलाया था' में था? भाववाच्य । न' भविष्यत्-आज्ञा 'न' कृदन्तु प्रत्यय भी भविष्यत् काल की आज्ञा में होता है । जाश्री और उन्हें बुला ला’ तिरुन्त क्रिया है, आज्ञार्थक, कर्तृवाच्य । तुरन्त अमले करना है। परन्तु वहाँ जाना और उन्हें बुला लाना' में दूसरी बात है। अभी तुरन्त जाने और बुला लाने के लिए आदेश नहीं है। बाद के लिए श्राज्ञा है। दोनो आज्ञाओं में अन्तर है। यह् न' भाववाच्य क्रिया बनाता हैं। इस का कर्ता सदा 'तुम' होता है—‘तुम खुद जाना और कहना' । “तुम बहुवचन और “जाना एकवचन । झूम कर ऊन से बातें करना यहाँ कर्म ( ‘बातें बहुवचन और स्त्रीलिङ्गः