पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४८२

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(४३७ ) १-राम रोटी खा रहा था २-सीता कपड़े धो रहीं यी • ३-तुम सो रहे थे 'य' से भूतकाल प्रकट है। उस भूतकाल में खाना, घोना, तथा सोन क्रियाएँ चल रही थीं। “हो गा’ लगाने से क्रिया में सन्दिग्धता प्रकट होगी--- | १- राम रोटी खा रहा हो गई। २–सीता कपड़े धो रही हो गी “तुम सो रहे हो । वर्तमान के लिए प्रयोग न हो या; क्योंकि जिस से बात कर रहे हैं, उसे का सोना कैसा ? यहाँ कोई सन्देह है ही नहीं। हाँ, भूतकाल में सन्देह प्रकट किया जा सकता है–'मैं गयो, कोई मिला नहीं । तुम सो रहे होगे !' | र्यो, यह रह धातु से 'अ' प्रत्यय क्रिया की वर्तमानता या जारी रहना प्रकट करता हैं। ‘काल के लिए 'है' आदि का प्रयोग होता है ।। | यह रहा' भी ( अस >) अह' के ही परिवार का है। निवासार्थक ‘रह' का रूप नहीं । *अहहि अवधी में वर्तमान है, और अहो' इस का मूतकालिफू रूप { पद्मावत' में प्रयुक्त हुआ हैं ।) अादि में ' झा श्रीराम--- ‘रहा' । सो, “खा रहा है' में रहा वर्तमानता प्रकट करने के लि; क्योंकि शेर मांस खाता है' में हैं सामान्य स्थिति प्रकट करने लिए है । ‘रह' (<अह) धातु और कालनिरपेक्ष् 'अ' प्रत्यय, पुंविभक्ति-रहा' ।

  • खा रहा था'.---खो रही हो गी' श्रादि । क्रिया की स्थिति प्रकट होती है।

‘कृ’ हेतुमद्भूत जब कि भूतकाल में किसी एक क्रिया के न हो ने से दूसरी क्रिया न हुई हो, तो इस ‘त' प्रत्यय को प्रयोग होता है । त + आ = ता, वे, ती ।। • १---सावधानी से चलते, तो ठौकर न लगशी २---परिश्रम करते, तो अनुत्तीर्ण क्यों होते ?