पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४८३

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( ४३८) पहली क्रिया हैतु' है, दूसरी हेतुमान्' । इसी को संस्कृत-व्याकरण में हेतुहेतुमद्भूत' कहते है ।

  • बवाच्य

‘त' एक भाववाच्य प्रत्यय भी है । पुविभक्ति से 'ता' बन जाता है और अ’ को ‘ए’ हो कर--- १-सीता से चलते नहीं बनता २-लड़कों से चलते न बना ३-- लड़कियाँ चलते-चलते थक गई ४–राम चलते-चलते थक गया ५—वह रोते-रोते बेहोश हो गई ६-उन से बातें करते-करते वह थक जाती है। ७–सीती घर से निकलते ही थक गई ‘लड़कियाँ चलती-चलती थक गई और लड़का चलता-चलता थक गया ऐसे कर्तृवाच्य ‘त’ से भी प्रयोग होते हैं। चलती-चलती श्रादि विशे- अण हैं, कर्ता-कारकों के । कालसम्बन्धी कुछ बातें काले-व्यञ्जना में संस्कृत से हिन्दी कुछ भिन्न पद्धति पर है। संस्कृत में भूतकाल और भविष्यत् काल को जैसे अद्यतन' और 'अनद्यतन' कालों में विभक्त किया गया है, वैसी कोई बात यहाँ नहीं है। ‘अद्यतन' का मतलब है--"आज का और इस से आगे-पीछे का भूत-भविष्यत् “अनद्यतन । अपि को भोजन किं अभी चार चैटे बीते हैं, तो अद्यतन भूत' और कोई काम किए पूरा दिन या इस से अधिक समय बीत गया है, तो “अनद्यतन भूत’। इसी तरह भविष्यत् भी । परन्तु संस्कृत में ‘अद्य' ('अ' ) का समय कुछ और लिया गया है और हिन्दी के युग में लोग आज' या ‘अद्य' के घेरे में कुछ देर-फेर कर बैठे हैं । इस लिए अद्यतन्–‘अनद्यतन की व्यवस्था हिन्दी ने नहीं रखी । 'अद्य' या 'आज' शब्द से प्रकट होने वाले समय को निर्देश संस्कृत-व्याकरण में यों दिया गया है-बीती हुई रात के पिछले भाग को लेकर आने वाली रात के पूर्व भाग के पूर्ण होने के समय तक का काल ‘अद्यतन' झहलाता है। यानी पिछली रात के बारह बजे से, आने