पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४८४

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वाली रात के बारह बजे तक का समय अद्य' या आज है । इस में भिन्न

  • अनद्यतन' । अंग्रेजी पद्धति जो आजकल 'अ' मानने की है, वही किसी

ससय इमारे यहाँ प्रचलित थी । अंग्रेजी तारीख आधी रात से बदलती है। परन्तु इम लोग कुछ इधर-उधर हो गृध्द । भाषा का विकास साधारण बनों में होता है। लोग जब सो कर उठे, तब नया दिन ! सो, सूर्योदय से मया दिन मानने लगे । सूर्योदय से लेकर दूसरे सूर्योदय से पहले-पहले का समय श्रा” । य, ‘अद्य' या 'आज' के अर्थ में अन्तर पड़ गया है इन सन्न झंझटों से बचने के लिए हिन्दी ने श्रदनअनुद्यतन' रूप से काल-भेद नहीं फिए । परन्तु भूत और भविष्यत् की सच्चतर तथा दिप्रकृती ( दूरी ) प्रकट करने के लिए थ६ स्वतंत्र पद्धति है} दाम पाया सामन्थ भूतकाल; रास गया था' विप्रष्ट भूलकाल, जिसे श्राञ्जल 'पूर्ण भूक्षकाल' लो; कइते हैं । ‘म गया है’ आसन्न भुतकाल ! 'के प्रयोग से प्रिकृष्टता और “” से आसन्नता प्रकट की जाती हैं। बहुत अधिक आसन्नता प्रकट करनी हो, वो लाक्षणिझ प्रयोग किए जाते हैं। किसी ने पूछा-क्लव जाओ गे } उत्तर में लोग कह देदे ई-अस्तु, जा रहूर हैं। 'ब्रा रहा हूँ वान कल की क्रिया है। अर्थ स्पष्टतः बाधित ई-ब्रा नहीं रहा है; क्योंकि उत्तर देने वाला जाने की क्रिया नहीं कर रहा है; बैठे-बैठे कह रहा हैं -‘बस, जा रहा हूँ ! इस तरह अर्थ की वाधा होने पर उस ( भूचियत् ) से निकटतम संबन्ध रखने वाला वर्तमान काल लक्षित होता हैं। मतलब या प्रयोजना' यह कि “तुरन्त जाने वाला हूँ जरा भी देर नहीं ।' थदि य लाक्षणिक प्रयोग न कर के कह दिया दाता–अभी तुरन्त जाऊँ गा तो उतनी आसन्नता न प्रकट होली । इसी लिए वइ लाक्षणिक प्रयोग । कभी कभी ‘वाला' प्रत्यय से भी अतिशय अन्नतः प्रकट करते हैं-उदी चढ़, गाड़ी ३ वाली हैं। ‘जाने वाली हैं' का मतलब, इही जा रही हैं। यानी छुटने में देर नहीं । अङ्ग *श्रासह भविष्यत्' प्रकट करने वाला ‘बाला' प्रत्यय कृदन्नु-प्रकाश का है । तद्धित वाला से इसे भिन्न उमझना चाहिए । 'अतुरई' में ई' तद्धित भावाचक प्रय है और ‘लिलाई-पाई अभी चल रही हैं' में 'ई' कृदन्त भाव- बाचक प्रत्यय हैं । संज्ञापद और क्रियापद में भेद हैं, तो दोनों ‘श्राई-श्राई प्रत्ययों में भी भेद अवश्य है । यही बात ‘वाला' प्रत्यय में है। संस्कृत के भगवान्’ भगवन्तौ, भगवन्तः' में तद्धित-त्ययान्त प्रकृति हैं और 'गतवान् गतवन्तौ, गतवन्तः कृदन्त हैं। इसी तरह द्दिन्दी का बल हैं ! भविष्यत् की ही तरह भूतकाल की भी श्रसन्नता लाक्षणिक प्रयोग से