पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४८५

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प्रकट करते हैं । कोई कहीं से आकर बैठा ही है कि किसी ने आकर पूछा-- ‘कब आए ?' उत्तर में कई दिया जाता है--‘चला ही आ रही हैं। यानी अाए देर नहीं हुई । इसी लाक्षणिक प्रयोग का निर्देश पाणिनि ने वर्तमान सामीप्ये वर्तमानवद्वा’ सूत्र से किया है। ऊपर हम ने ‘बाला' कृदन्त प्रत्यय का जिक्र किया है। हिन्दी की यह पद्धति है कि मूल धातु की तरह उसके भाववाचक कृदन्त रूप में भी सहायक क्रियाएँ लगती हैं-'गिर पड़ा ‘जाग पड़ा’ और ‘शिरना पड़ा' नागना पड़ा । मूल धातु से ‘पड़ लग कर अाफ- स्मिकता प्रकट करती है और उस के भाववाचक कृदन्त गिरना' ‘जायना' आदि से लग कर विवशता ध्वनित करती है। यहाँ मतलब केवल इस से कि मूल घालुओं की ही तरह उस के भाववाचक कृदन्त रूप भी काम में लाए जाते हैं। कृदन्त वाला' प्रत्यय मूल धातु से नहीं, उस के भाववाचक कृदन्त रूप से होता है.“जानेवाला है। ‘बाने ही वाली है' इत्यादि । राम अचे गानेवाला है' में ‘वाला’ कृदन्त है और राम एक गानेवाला आदमी है मैं ‘वाला' तद्धित प्रत्यर्थ है। कृदन्त संज्ञाओं से तद्धित प्रत्यय होते ही हैं- ज्ञानवान्' गतिमान् अादि । परन्तु कृदन्त संज्ञा से फिर कृदन्त प्रत्यय सोचने की चीज है । ‘गाड़ी जानेवाली है' में आना' कृदन्त संज्ञा है-‘ला’ धातु से “न' भाववाचक प्रत्यय । इस कृदन्त ( ‘जाना' आदि ) से फिर एक कृदन्त ‘वाला' हो सकता है क्या ? यह प्रश्न । उत्तर है कि हो सकता है, होता है। भाषा का प्रवाह सामने है। ऐसे प्रयोगों की गति क्या कोई बन्द कर सकता है ? संस्कृत में कृदन्त से फिर दूसरा कृदन्त प्रत्यर्थ नहीं होता, न हो | हिन्दी में तो होता है। उसी का हम श्रन्धाख्यान कर रहे हैं। संस्कृत में तद्धितान्ति से तो दूसरी तद्धित प्रत्यय ( भिन्नार्थ ) होता है न ? *समर्थ' से ‘सामर्थ्य तद्धित और फिर इस से ( मतुप् ) 'वान्'–सामर्थ्यवान् । वहाँ तद्धितान्त से तद्धित, यहाँ कृदन्त से कृदन्त । अपना-अपना मार्ग । संस्कृत में तद्धित ‘धनवान् हिन्दी में इसी थान’ को सस्वर कर ‘गाड़ीवान और रूपान्तर ‘गाड़ीवाला' । “धनवान् के ही 'बान्’ की तरह संस्कृत में भूक?f.* *g दन्त ‘गतवान्’ गतवती । इस 'वान्’ को ‘वाला बना कर ( भूत की फराह ) भविष्यत्-अतिनिकट भविष्यत्---‘जाने वाला है’ ‘बाने वाली है' इत्यादि । द्विकर्मक क्रियाएँ भाषा में कोई-कोई क्रियाएँ ‘द्विकर्मक' भी कहलाती हैं। अकर्मक और अकर्मक, ये दो भेद धातुओं के और फिर सकर्मकों में कुछ 'द्विकर्मक' भी।