पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४८६

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‘राम गोविन्द से कुछ कह रहा है वाक्य में 'राम' कृत है। कुछ कर्म है और गोविन्द भी एक तरह का कर्म ही है---‘गौण कर्म ।' ‘स गोविन्द से रास्ता पूछता है । यहाँ ‘यूऊना' क्रिया भी द्विकर्मक है। रास्ता' मुख्य फर्म है, ‘गोविन्द गौण कर्म । कर्मवाच्य क्रिया की स्थिति मुख्य कर्म के अनुसार हो गी--- १-राम ने गोविन्द से कोई बात पूछी २—सुशीला ने गोविन्द से रास्ता पूछा। हिन्दी में से विभक्ति करण, अपादान, कर्ता तथा कर्म जैसे कई कार में लगती है। संस्कृत में 'रामः गोविन्दम् मार्यम् पृच्छति' य मुख्य फर्म ( मार्गम् ) की तरह ‘गोविन्दम्' को देख कार; समानरूपता के कारण, ‘गौश कर्म' कह दिया गया उसी की याद हिन्दी में है। संस्कृत में ‘दुहु धातु भी द्विकर्म है-“गां पयः दोग्धि' | ‘पयः' मुख्य कर्म है, गाम्' गौण कर्म । हिन्दी में ‘गौ से दूध दुहता है' ऐसे द्धिकर्मक प्रयोग होते ही नहीं हैं; और यदि होते, तो गौ’ को अपादान कहा जाता । गौ से दूध का बिलगाव होता है । ‘राम गौ दुइता हैं' या 'राम दूध दुहता है। इस तरह एक ही कम का प्रयोग होता है । ‘राम गौ दुइता हैं' कइने पर गौ’ को ‘गौण कर्म ही कहा जाए गो) 'दूध' कहने की जरूरत नहीं; क्योंकि गौ से दूध ही दुइ जाता है, कोई और चीज नहीं। गौ से' को सुगड गो से लिखना-बोलना मालवी है। गोरक्षा-आन्दोलन के उठने पर पिछले दिनों जगह-जगह दीवारों पर लिखा गया था---' हमारी भाता है। दो ही राष्ट्र की सम्पत्ति हैं' आदि। इस तरह वाक्य में ‘गो' शब्द का प्रयोग गलत है, जो रक्षा जैसे समस्त पदों को देख कर किया गया ज्ञान पड़ता है। हिन्दी ने संत के प्रथमा-कवचनान्त। तत्सम) शब्द प्रतिपदिक रूप से अपना ई-विसर्ग अादि पृथक्कर के । ' शब्द का प्रथमा के कान में ‘गौः रूप होता है । जिसर्ग हटा कर गौ' हिन्दी ने लिया । इस लिए शौ इमारी माता है' चाहिए; गो' नहीं । 'राजा की बात है। होता है; 'राजन् की बात है' नहीं। जिस शब्द का एकवचन संस्कृत में नहीं बनता, उसे झूल रूप में हीं ले लिया गया है---‘दाराः' का 'दार' । पुष्यवाचक सुमनस्' का स्’ अलग कर के 'सुमन' और 'अप्सरसू' का ‘स्’ छाँट कर संस्कृत का ही ‘अ’ स्त्री-प्रत्यय लगा कर.--'अप्सरा' । यह प्रासंगिक चर्चा, गौ” शब्द सामने आ जाने से ।।