पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४८७

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{ ४४२ } सभी सकर्मक धातुएँ ‘प्रेरणा' में द्विकर्मक हो जाती हैं; यह अभी आगे स्पष्ट हो गा । | शब्दों के विविध प्रयोग होते हैं । अकर्मक धातुएँ भी कभी-कभी सकर्मक कर ली जाती हैं--उस ने एक अच्छी लड़ाई लड़ी राम ने वह खेल अच्छा खेला' । *लड़ाई' तथा 'खेल' यहाँ कर्म ही कहे जाएँ गे; यद्यपि लड़ना’ और ‘खेलना' अकर्मक क्रियाएँ हैं। 'लड़ाई लड़ी’ और ‘खेल खेला' । अपने ही एक रूप को कर्म बना लिया गया है। कोई ब्राह्मण अपने ही घर के चार व्यक्तियों को बैठा कर विधिवत् भोजन करा दे और कहे कि 'आज मेरे यहाँ चार ब्राह्मणों को भोजन कराया गया है तो क्या झूठ ही गा उस का कहना ? यही बात समझिए । सकर्मक धातुओं के भी अकर्मक प्रयोग होते हैं, यदि कर्म की विवक्षा न हो--गोविन्द काशी में पढ़ रहा है। ‘क्या' पढ़ रहा है, कहना जरूरी नहीं समझा । इस लिए पढ़ने का अकर्मक प्रयोग अति प्रसिद्ध या अव्यभि- चरित कर्म का उपादान लोग प्रायः नहीं करते और थो सकर्मक धातुओं को अकर्मक प्रयोग करते हैं । ये इस तरह की बातें बहुत साधारण हैं; इस लिए अधिक विस्तार अनावश्यक है। कोई अकर्मक मी कभी सकर्मक हो जाती है । ‘है' अकर्मक हैं, पर राम को ज्वर है' में सकर्मक है। पूर्वकालिक क्रियाएँ राम पहले रोटी खा गा, तब पढ़ने जाए गा’ 'इस वाक्य का संक्षेप है- 'रान रोटी खा कर पढ़ने जाए गा'। दोनो तरह के प्रयोग होते हैं। यदि इस बात पर अधिक बल देना है कि 'रोटी खाए बिना पढ़ने न जाए , तो कहा जाए -म रोटी खाए गए, तब पढ़ने जाए गा” । यदि ऐसी कोई बात नहीं, क्रियाओं को पूर्वापर क्रम मात्र बतलाना है, तो फिर ग्राम रोटी खा कर पढ़ने जाए गा’ हो गी | कभी-कभी अगली क्रिया पर जोर देने के लिए भी ऐसे प्रयोग होते हैं । कृमी पूर्व क्रिया पर ही जोर होता है । बोलने के बँग से यह सब स्पष्ट होता है । सकर्मक अकर्मक सभी धातुओं से, सभी कालों में, विधि श्रादि सभी अर्थों में, सभी पुरुषों में और सभी वचनों में कर लगता है, क्रिया की पूर्वकालिकता प्रकट करने के लिए