पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४८८

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१- सुशीला पढ़ कर फल खाए यी २-राम फल खाकर पढे । एक जगह पहले ‘पढ़ना', फिर खाना' है और दूसरी जगह पहले खाना और तब “पढ़ना है ।। केवल कर' धातु के अागे 'के' लगता है।--- मैं यह काम कर के भोजन करूंगा तुम ऐसा कर के कौन सा फल चाहते हो ? यह 'के' ब्रजभाषा तथा अवधी आदि के 'ॐ' प्रत्यय का कोमल और मधुर रूप है । वहाँ भोइन अश्य कै बेनु बच्चावै जैसे प्रयोग होते हैं। ‘ाय कै- श्रा कार ! ‘आइ के भी चलता है । इ' को ही विकल्प से यु' हो जाता है। ‘जाइ कैं' को 'बाय कै कम देखा जाता है। ‘जाइ’ से ही काम चल जाता है—‘जाइ कहौ मनमोहन स । “जाइ-जा कर । यह 'इ' प्रत्यय

  • पुढ़ि कान्ह फहाँ ते हौ आए इतो' आदि में भी स्पष्ट है । इस ‘इ' के

श्रागे 'ॐ' भी जोड़ देते हैं-ढ़ि कै'। उपसर्गों से परे संस्कृत ‘त्या’ को ईय' होता देखा जाता है-नीत्वा' अपनीय’ | इसी ईय’ का पूर्वांश ह्रस्व कर के ब्रजभाषा अदि में 'इ' पूर्वकालिक प्रत्यय है; 'य' को हटाकर । सो, हिन्दी की 'कर' धातु के आगे के रहता है ।• राम काम कर कर भोजन करे गा अच्छा नहीं लगता, इसी लिए 'के' को प्रयोग । हाँ, क्रिया के ‘सुमभिहार' मैं-क्रिया का अत्यधिक होना बतलाने के लिए धातु की द्विरुक्त जन होती है, तब कर वर अवश्य होता है । “तू कम दर कर मर जाएगा; पर कोई पूछे या नहीं।' यद्द झर-झर धातु की द्विशक्ति है। ऐसे स्थलों में संस्कृत भी घातुओं को द्विशक्ति करती है। परन्तु वहाँ शब्द में अत्यधिक रून्तर हो जाता है--‘पापठ्यते' । हिन्दी में पढ़ता ही रहता है जैसे प्रयोग बही अर्थ प्रकट करते हैं। कहीं पढ़--पढ़ कर ले ले कर' जैसे प्रयोग धातु की द्विशक्ति से होते हैं--सब अलग-अलग और सटे ।। | यहाँ इस प्रकरण में एक ही प्रयोग ऐसा है, जिस का उल्लेख करना जरूरी है। (रास रोटी ले कर आया-राम रोटी ले आया' इन दो प्रयोग में अन्तर है। ‘ले कर या' में 'लेन!' क्रिया पर भी जोर है; परन्तु ‘ले