पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४९०

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का कोई झमेला भी नहीं है। कृदन्त क्रियाओं के 'वचन' कर्ता या कर्म के अनुसार लड़का गया-लड़के गये । लड़की गयी लड़कियाँ गई ‘लड़के गये थे' में थे' भी बहुवचन और थे' भी उसी रूप में है। लड़के गये हैं में भी वही बात है। परन्तु स्त्रीलिङ्ग में कुछ अन्तर है। यहाँ बहुवचन का द्योतन अन्तिम क्रिया--रूप से ही होता है- १-लड़कियाँ गयी थी २-लड़कियाँ गयी हैं। यहाँ ‘गयी’ को गयीं न किया जाएगा---' और 'हैं से ही काम निकल जाता है । यीं थीं और ‘गयीं हैं बोलने में बहुत भद्दे और अटपटे लगते हैं–मिनमिनाहट कर्णकटु भी बहुत है। इसी लिए एक ही स्वर अनुनासिक होता है। जैसे 'सुन्दर लड़कों से कहने में विशेष्य के वचन- झारक आदि विशेषण में भी समवेत है; उसी तरह गयी थीं अदि में 'वचन' की व्यवस्था है। परन्तु कही अन्तिम क्रिया से नहीं, मुख्य ( पूर्व } क्रिया से ही बहुत्व सूचित होता है। उदाहरण लीजिए-

  • पुस्तकें पढ़नी चाहिए ठीक है; ‘चाहिएँ नहीं। चाह धातु से ‘इए'

भाववाच्य प्रत्यय है, सदा एकरस रहता है-“चाहिए। जैसे पढ़िए कीजि श्रादि, उसी तरह ‘चाहिए। चाहिय ऐसे बसन मुनिन्हँ कहूँ अवघी । राष्ट्रभाषा में ‘य' की जगह चाहिए। ऐसे कपड़े मुनि जनों को चाहिए'–‘चाहिएँ नहीं । “अप कपड़े दीजिए' में ‘आप’‘बहुवचन' और

  • कपड़े भी बहुवचन; पर क्रिया भाववाच्य है-'दीजिए । “हमें कपड़े सीना

चाहिए' कर्ता-कर्म बहुवचन और सीना' कृदन्त भाववाच्य पुल्लिङ्ग-एकवचन; तिङन्त भाववाच्य ‘चाहिए अन्यपुरुष एकवचन | “हमें कपड़े सीने चाहिए? में सीने मुख्य क्रिया कर्म-वाच्य और ‘चाहिए भाववाच्य ! आप अच्छी पुस्तकें पढ़िए, मन शुद्ध हो जा' में श्राप’ बहुवचन और कर्म १ ‘पुस्तकें ) बहुवचन; पर “पढ़िए अन्य पुरुष एकवचन । ‘इए' भाववाच्य तिङन्त-पद्धति का प्रत्यय है न ! इसी तरह ‘चाहिए है। कपड़े धोने चाहिए' में सीने