पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४९४

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व्याकरण की सामान्य चर्चा के साथ-साथ, कहीं कुछ भाषाविज्ञान तथा प्रयोग-मीमांसा आदि इसी स्थिति के द्योतक हैं । | हाँ, व्याकरण की यह प्रौढ़ ग्रन्थ अवश्य है। व्याकरण की प्रारम्भिक स्थिति ‘गुरु जी के व्याकरण तक ही थी । इस ग्रन्थ के सिद्धान्त विज्ञान- मिचि पर हैं, तो कभी भी बदलें गे नहीं। माषा-विज्ञान हिन्दी में अभी प्रारम्भिक स्थिति में है और प्रयोग- मीमांसा का भी अभी वाल्यकाल ही है । हिन्दी धातुओं का विकासक्रम हिन्दी की जिन धातुओं की प्रत्यक्षता संस्कृत भातुओं में है, उन के बारे में कोई चर्चा करना आवश्यक नहीं । जिन का प्रभारी संस्कृत में नहीं मिलता, उन के संबन्ध में कई कल्पनाएँ हो सकती हैं । वैसी धातुओं की बहुत बड़ी संख्या प्राकृत-साहित्य में मिल जाएगी। वहाँ भी जिस की उपलब्धि न हो, उस के संबन्ध में यही कहा जाए गा कि मूलभाषा से निकलीं उस धातु का प्रयोग संस्कृत तथा प्राकृत साहित्य में किसी कारण नहीं हुआ; किन्तु जन-भाषा के प्रवाह में बहते-लुढ़कते वह ( धातु } हिन्दी मैं आज इस रूप में उपलब्ध है। ‘भूलभाषा' की कई विशेषताएँ हिन्दी में उपलब्ध हैं। उदाहरणार्थ समास-प्रियता का अभाव | मूलभाषा में समास' जैसी चीज का प्रायः अभाव था। ज्ञद्ध साहित्य बनने लगा, तो इस ओर प्रवृत्ति बढी । परन्तु वो भी, वैदिक-साहित्य में समाप्त नहीं के बराबर हैं ! यही चीच हिन्दी के गठन में है। संस्कृत-साहित्य में समास' की ओर अत्यधिक प्रवृत्ति बढी; इद कर दी गई ! परन्तु हिन्दी का स्वरूप-गठन उस प्रवृत्ति से प्रायः दूर ही है। श्राबश्यक स्थद्ध पर उस की उपेक्षा भी नहीं । इस तरह की बहुत सी बातें हैं, जिन से स्पष्ट है कि संस्कृत की अपेक्षा हिन्दी इस मूलभाषा' के अधिक निकट हैं। हिन्दी में बहुत सी ऐसी क्रियाएँ हैं, वो किसी न किसी रूप में उस “मूलभाषा में गृहीत थीं; परन्तु संस्कृत में जिनके दर्शन नहीं होते। ऐसी क्रियाओं या धातुओं पर इम कुछ न कहेगें । परन्तु हिन्दी के जो धातु ‘परोक्षवृत्ति' से संस्कृत में प्राप्य हैं, उन की विकास-पद्धति नमूने के लिए दे देना अप्रासंगिक न हो गी ।। २६.