पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४९६

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पहचान' । पूरबमें 'पहिचान' का चलन है, जैसे भगिनी’ की ‘बहिनी' । मेरठ की ओर बहन' राष्ट्रभाषा में भी ‘बहन' । ३-- -ओढ़-'मैं रजाई ओढ़ता हूँ। संस्कृत ग्वई से 'ऊद कृदन्त हैं--‘मया से ऊदः कार्य-भार:'---मैं ने वह कार्यभार अपने ऊपर ले लिया हैं । वहन करना, दोना । जिम्मेदारी लेने को लक्षणा से वहन करना' या ‘ऊपर लेना' कह देते हैं। हिन्दी में यह लाहृणिक अर्थ इटा कर वाच्य अर्थ में ही 'ढ' से 'ओ' धातु बना ली 1 किसी कपड़े को अपने ऊपर लेना-‘श्रोढ़ना' । बहू चादर ओढ़ती है। धोती पहनती है, ऊपर से चादर ओढ़ती है । मैं रचाई ओड़ता हूँ' 'तु कम्बल ओढ़ता हैं । ऊढ का वर्ण-विपर्यय और सन्धि कर के दे+ऊ=‘ढो’ धातु पृथक् | ढोना’----बहन करना । इसी तरह ‘प्रौद' से पश्चिालीय घोड़ा' धातु है । ख्यातन मा चला तौ अब पोढ़ाये गे हैं, कुछ योढ़ात त हैं-खेतों में बने प्रौढ़ हो गई हैं--- गदरा गए हैं और कुछ गदराते जा रहे हैं। तो, जान, पचान, बैठ, पैठ, ओढ़, दो श्रादि हिन्दी के घातु भाने छाएँ, या ‘नाम धातु’ ? यह प्रश्न उठ सकता है। उत्तर है, धातु' । जानपहचान' या 'उठ-बैठ' आदि हिन्दी के भूल धातु हैं। इन का विकास प्रत्यक्षतः धातुचे शब्दों से है। जहाँ ऐसी बात नहीं, वहीं नामधातु का मानना उचित हैं; जैसे 'अलसाना' । यह अलसा' धातु है अलस' (भाववाचक ( तद्धित ) संज्ञा से । 'जब राम अलसाता है, तुरन्त काम छोड़ देता है। संस्कृत ( तद्प ) शब्द 'अलस' विशेषण से यह अलसीदा क्रिया नहीं है-अलस' तद्भव शब्द से हैं। तद्रूप संस्कृत शब्द से तो हिन्दी धातु यो नामधातु प्रायः बनते ही नहीं है। ‘अन्मता-मरता है गलत, “जन्मता-भरता है। शुद्ध है। सो, संस्कृत ‘अलस' विशेषण से भाववाचक संज्ञा आलस्य' । *अलिस्य से हिन्दी ‘लस' ( भाववाचक संज्ञा }। इस आलस' से फिर तद्धितः-अलसी'। ‘तु बहुत अलसी है। तू बहुत अल्स हैं हिन्दी में बङ्गलत हो गई। सो, श्रीलक्ष' से अलसान' -भाभधातु । आलस करता है—अलसाता है। या आलस में आता है, आलस में मरता है-अलसाता है ।