पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/४९७

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(४५२ } धातु तथा नामधातु का विषय-विभाजन थूकना' जैसी क्रियाओं का विकास विचारणीय है कि संस्कृत श्रीवति का विकास होने के कारण यह ‘वातु' है, या कि ‘थू अनुकरणात्मक शब्द से नामधातु है ! भाषा में मूलतः धातु-उत्पचि अनुकरणात्मक ‘पत् पत्' जैसे शब्दों से ही है; परन्तु आगे भाषा-विकास होने पर व्याकरण में जो शब्दों का विषय-विभाजन हुअा है, उसी के अनुसार हमें विचार करना है। यों ‘डी’ से थूक' का विकास माना जाए, तो यह धातु' है ही और यू अनुकरणात्मक शब्द से सुंबन्ध हो, सो हिन्दी की स्वतंत्र धातु है' । 'शू' शब्द होता है, जब हम थूकते हैं । केवल 'थू से धूता' आदि अच्छा न लगता, इस लिए ‘क’ का श्रागम- थूक' । “थू करने की क्रिया ‘थूकना । इसी तरह ‘फू फू' करने की क्रिया

  • फूकना । मुहँ से हवा निकाल कर अाग को तेज करना, या दीवे को बुझा

देना आदि मुहँ से ‘फेंक मार कर सम्पन्न होता है । भाववाचक संज्ञा अनु- नासिक फैंक’ बनती है । *फूकना लाक्षणिक प्रयोग ‘जलाने के अर्थ में

  • झोपड़ी फूक दी। इस फी भी लक्षणा-‘सब सम्पत्ति फूक दी । “भौं भीं'

शब्द करना-भौंकना' । 'कुत्ते भोंकते हैं । ‘ओं को ह्रस्व कर के और स्वर निरनुनासिक कर के ‘भूकना भी चलता है । यों ये सब क्रियाएँ “नामधातु' से नहीं, घातु से मानी जाएँगी । आगे ‘नामधातु' प्रकरण अाए गई । हिन्दी में ही नहीं, संस्कृत में भी अनुकरणात्मक शब्द-रचना बहुत है। काकः कस्मात्?- शब्दानुकरणात्-‘काक' कैसे बुना ? उत्तर-शब्दानुकरण से । फौं ‘का का' करता है। ‘क’ से ‘क’ प्रत्यय काक'। हिन्दी का 'भेड़' शब्द भी ऐसा ही है।

    • मैं करती है, इस लिए भेड़' । स्वर निरनुनासिक हो गयी । “भे भे’

करती है, यों निलुनासिक भी अनुकरण-शब्द चलता है। संस्कृत में ‘धीवति क्रिया होने पर भी 'यू' से ‘धूत्करोति' का प्रचार है। ‘पत्’ के ही हँग पर हिन्दी में पड़' है--गिरता-पड़ता रहता है । गिरने को ‘पट' शब्द होता है। “पट' का ही विकास पड़' हैं। संस्कृत में अनुकरणात्मक शब्द 'पत् पत्’ से प्रतमार्थक पत्' धातु और हिन्दी में ‘पट' अनुकरण शब्द से ‘पड़ धातु ।

  • पतन' का विकास भी पड़ना सम्भव है । सब तरह से पड़' धातु है, नाम-

धतु नहीं।। ४-'पा' ‘पद्म' से है। चु’ को ‘कू’ और अन्त में ‘अ’। रामः तण्डुलान् पचति'-राम चावल पकता है। ‘पचता है। अलग चीज है-

  • भोजन पेट में पंचती है। पचना' भी ‘पकानय' की तरह एक स्वतंत्र क्रिया