पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(४५५)

( ४५५ ) धातु और नामधातु का भेद घातुश्र से नाम ( संज्ञा ) तथा नाम से धातु भाषा में बनते ही रहते हैं। कभी-कभी लोग चक्कर में पड़ जाते हैं और धातु को नामधातु समझ बैठते हैं। हिन्दी की एक क्रिया है 'पिनकना' । अफीम के नशे में हालत अस्त-व्यस्त हो जाना----पिनफना' । और वह फिर पिनकने लगा। इस ‘पिनक' को लोगों ने 'पीनक' संज्ञा से व्युत्पन्न माना है, यानी नामधातु ! यह गलत बात है । *पिनक’ भूल पातु है और उस की कृदन्त संज्ञा पीनफ' है; जैसे 'खिझ' की खीझ' और 'भिड़ से भीड़' । यदि नामघातु होती, तो आकारान्त होती; क्योंकि नामधातु बनाने के लिए हिन्दी श्रा' प्रत्यय लगाती है---‘फड़फड़ करना-“फफड़ाना और ‘भड़ भड़' करना--भड़भड़ाना' । “हथियाना'--'मटियाना' आदि में भी 'अ' है । “सरकना' की 'सरक' मूल धातु है। संस्कृत सरति’ का सर’ ले कर आगे ‘क’ लगा लिया--'सरक' | इसी का प्रेरणा है-सरकाना' । सर' के श्राई ‘क’ इस लिए लगाया कि वायु-विशेष ( अपानवायु ) की प्रवृत्ति बताने के लिए 'सर' घातु हिन्दी में है--‘वायु नहीं सुरती है। सरकती है अन्यत्र । संस्कृत की पत्' धातु को पतन संज्ञा से नामघातु बताना जैसा, वैसा ही हिन्दी पीक' से 'पिन को नामघातु कहना समझिए । | ‘फटकता है नाच' । यहाँ ‘फटक' मूल धातु है। सूप की फट फट” ध्वनि' होती है, पछोरने में । इसी अनुकरणात्मक शब्द “फट' में ' लगा कर फटक' सकर्मक्क घातु । कभी-कभी अने' के अर्थ में अफर्मक फटक पृथक हैं। फट' धातु अकर्मक अलग है---‘धूप से लकड़ी फटती है', फूट पकने पर “फटती है' | ‘फटकती है नान्न' और यहाँ वह ‘फुदकती ही नहीं अलग-अलग हैं। यानी अहाँ क्रियांश स्पष्ट दिखाई दे, वह मूलधातु और जहाँ ऐसी बात न हो, वहाँ ‘नामधातु'। ‘हथियाना' का 'हाथ' और 'मटियाना' का ‘भाटी’ अंश संज्ञाएँ हैं, क्रियाश नहीं है। इसी लिए इथियाना' मटियाना' नामघातु हैं ।