पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५०१

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द्वितीय अध्याय

उपधातुओं के दो भेद और उनके प्रयोग

मूल धातुओं से कुछ उपधातुएँ बन जाती हैं और फिर इन (उपधातु) के प्रयोग उसी तरह होते हैं, जैसे कि मूल धातुओं के । उसी तरह सन काल और उसी तरह कृदन्त-तिङन्त तथा उभयात्मक पद्धतियों । जो कुछ उन धातु से बनता-चलता है, वही सब इन उपधातुओ से । परन्तु स्वरूप-भेद तो है ही। इस भेद के ही कारण तो ‘उपधातु’ इन्हें हम कहते हैं । इन उपधातुओं की दो श्रेणियाँ हैं । एक श्रेणी को तो हम मूल धातुओं का विकसित रूप कह सकते हैं और दूसरी को संकुचित रूप । विकसित-रूप ‘उपधातु से बनी क्रियाएँ प्रेरणा'-प्रक्रिया में आती हैं और संकुचित-रूप उपधातु से बनी क्रियाएँ कर्मकर्तृक क्रियाएँ' कहलाती हैं। प्रेरणा-क्रियाओं को इम ‘द्विकर्तृक क्रियाएँ भी कह सकते हैं और कर्म-कर्तृक क्रियाएँ कर्मा- दिकर्तृक' क्रियाएँ भी कही जा सकती हैं और ‘अकर्मक क्रियाएँ भी। आगे इनदोनो भेदों का दिग्दर्शन लीजिए । ‘प्रेरणा' या 'द्विकतृक' क्रियाएँ पीछे कहा गया है कि कभी-कभी ऐसे क्रिया-पद सामने आते हैं, जिन्हें व्याकरण में द्विकर्मक' कहते हैं। कुर्म तो वस्तुतः एक ही होता है; परन्तु किसी दूसरे कारक का प्रयोग इस तरह किया जाता है कि वह भी कर्म-सा ही लगता है। इसे गौण कर्म कहते हैं। गौण कर्म' का मतलब यह कि ‘गौणी' ( लक्षण ) वृत्ति से इसे 'कर्म' कहते हैं। सादृश्य-संबन्ध से लक्षा) मा बच्चे को दूध पिलाती है। यह पिलाना' क्रिया सकर्मक है। ‘दूध” कर्म है—पी जानेवाली या पिलाई जानेवाली चीज ) मा ‘बच्चे को दूध पिलाती है। यहाँ ‘बच्चे को’--ऐसा प्रयोग है कि कर्म-सा जान पड़ता है । जैसे ‘मा वच्चे को देखती हैं' में बच्चे को कर्म है, वैसा ही ‘मा बच्चे को दूध पिलाती है' में भी बच्चे को’। बनावट कर्म-कारक जैसी है; परन्तु वस्तुतः यह कर्म है नहीं । कर्म तो दूध' है। बच्चा तो दूध पीने वाला है -“कर्ता