पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५०२

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है। परन्तु उस (‘कर्ता ) को प्रयोग कर्म-जैसा है। इसी लिए यह ‘गौण फर्म'। फलतः क्रिया द्विकर्मक हुई । एक ( असली ) कर्म (दूध ) और दूसरा ( गौण ) कर्म ‘बचा' । | ‘मा बच्चों को दूध पिलाती है' में क्रिया जैसे द्विकर्मक है; उसी तरह

  • द्विकर्तृ'क' भी है। असली कर्ता तो बच्चा है, जो दूध पीने वाला है; परन्तु

जिस का प्रयोग कर्म की तरह हुआ है । 'मी' का संबन्ध पीना क्रिया से कर्तृ-रूप में नहीं है—मा दूध पीती नहीं है, बच्चे को पिलाती है। ‘बच्चा मा को दूध पीता है यहाँ ‘बच्चा प्रष्ट कर्ता है। ‘मा' में विशेषता प्रकट करने के लिए संबन्ध-विभक्ति इटा कर ‘कर्ता की तरह बोलें-'भा बच्चे को दूध पिलाती है तो 'मा' कर्ता ज्ञान पड़ती है। इसे ही गौण फर्ता हम कहेंगे । वस्तुतः सा का संबन्ध दूध ( फर्म ) से है; धात्वर्थ पीने से उस का कोई अन्वय नहीं है। शब्द-प्रयोग ऐसा है कि उसमें कृर्तृत्व-सा जान पड़ता है ।। | तो, उपयुक्त प्रयोग में जैसे दो कर्म हैं---मुख्य और गौण-उसी तरह दो कर्ता भी हैं-मुख्य और गौण । मुख्य कर्वा गौण कर्म के रूप में हैं। और मुख्य कर्म ( दूध) का भेदक (‘मा') कर्ता के रूप में । “बच्चा मुख्य कृत या ‘गौण फर्स' है। ‘मा गौण कर्ता है। इसी ‘गौण’ कर्ता को लोग ‘प्रयो- जक' कर्ता कहते हैं और असली कर्ता को प्रयोज्य' कर्ता । “प्र’ इटा कर योजक'–ोज्य कहें, तो अधिक स्पष्टता आ जाएगी। मा बच्चे को दूध पीने में लगाती है---‘योजक हैं और बच्चा उस १ मा } का ‘योज्य है। ‘योज्य' ही असली कर्ता है। राम नौकर से लकड़ी फङ्कवाता हैं। राम योजक है और नौकर है ‘योज्य' । 'योज्य ( नौकर ) ही तो लकड़ी पर कुल्हाड़ा सारता है न ? वहीं कता है। उस ( क ) का संबन्ध 'राम' से है । राम उस का मालिक है । उस ( संबन्धी या भेदक ) को प्रयोग कृत की तरह किया गया; क्योंकि उस क्रिया के करने में उस (नौ ) की इसने लगाया हैं---नौकर से वह काम वह ( राम' ) करा रहा है। सो, कृमि करने वाला असली ‘कर्ता और प्रेरक या योज* ‘गौण कर्ना' ।। इस तरह की क्रिया को प्रेरणा' कहते हैं । 'राम वेद पढ़ता है'। 'पढ़ मूल धातु है, जिस के वर्तमान-कालिक साधारण प्रयोग में 'राम' कर्ता हैं। इस की प्रेरणा का द्विकर्तृका रूप-पढ़ाना' हैं। गुरू राम को वेद पढ़ाता है। इस प्रेरणा-रूप में मूल क्रिया का कत-असली झर्ता-“म” इस तरह ‘को' विभक्ति के साथ है कि कर्म-सा लगता है। राम को वेद पढ़ने में