पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५०३

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मदद देने वाला गुरु’ है। यह प्रयोजक’, ‘योजक' या ‘गौण' कर्ता है ।। कर्म असली है 'वेद', जो पढ़ा जा रहा है। परन्तु कर्ता ( ‘रास’ ) का प्रयोग कर्म की तरह है । इस लिए यह ‘गौण कर्म । तात्विक कर्ता या प्रयोज्य गौण कर्म के रूप में आता है, जब कि किसी क्रिया का प्रेरणा-प्रयोग होता है।

ऊपर जो प्रेरणात्मक क्रिया के उदाहरण दिए हैं, द्विकतृक और द्विकर्मक हैं । परन्तु सभी प्रर-क्रिया द्विकर्मक नहीं होतीं; यद्यपि द्विकर्तृक सबै होती हैं। एक कर्ता असली और दूसरा ‘गौण' या प्रयोजक' । साधारण अवस्था की सकर्मक क्रियाएँ प्रेरणा में द्विकर्मक हो जाती हैं और अकर्मक बन जाती हैं सकर्मक । द्विकर्मक के उदाहरण ऊपर आ चुके हैं; 'एककर्मक देखिए- १-मा बच्चे को बैठाती है। २–मालिक नौकर को जगाता है। ३---धार्थ बच्चे को सुलाती है। ४-नेवले ने साँप मारा बच्चा बैठता है, नौकर जागता है, बच्चा सोता हैं और साँप मरता है। बैठने, जागने, सोने और मरने के कर्ता क्रमशः बच्चा, नौकर, बच्चा और सॉप हैं । ये सब क्रियाएँ अकर्मक हैं। परन्तु प्ररणा में इन के रूप बैठाना, जगाना, सुलाना और मारना सफ़र्मक हो गए हैं । कत' की प्रयोग कर्म की तरह है। इस लिए ‘गौण कुर्मं । क्रिया सकर्मक हो गई है। अपना तात्विक मुन्न न होने पर भोद लिए बच्चे से भी कोई स्त्री पुत्रुक्ती' ही कहलाती है। इसी तरह इस गौण कर्म से क्रिया ‘सकर्मक' । मतलब यह निकला कि मेरा में सभी क्रियाएँ सुकर्मक होती हैं; अकर्मक कोई रहती ही नहीं है ‘मालिक नोकर से काम कराता है। यहाँ नौकर भी कर्म ही है; यह प्रचलित बात है। आगे हम इस पर कुछ पृथक् विचार करें ।। ‘मरता हैं' की प्रेरणा सारतां है' नहीं; ‘मार देता है' मार डालता है। जैसे रूप में होती है। मार' एक पृथक् ( मूल ) धातु है—‘ताड़ना' करने के अर्थ में । मरिना-पीटना मात्र विवक्षित हो, तो कहीं जाए गा-‘मालिक