पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५०५

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( ४६० ) होती है—कपड़े सिल रहे हैं-गट्टर बँध रहा है'--'पोटली बँघ रही हैं। इत्यादि । सो, ‘सी' तथा 'बाँध' मूल धातुओं के प्रेरणा-रूप हैं---‘सिला { सिलाना ) और ‘बँधा' ( बँधाना ) आदि । उन्हीं मून धातुओं के कर्म- कर्तृक' प्रयोग में रूप हैं-'सिल' ( सिलना ) बँध’ (बँधना ) आदि ।

  • कर्मकर्तृक' प्रकरण इम आगे लिखें ये । यहाँ तो प्रासंगिक निवेदन है ।

‘बाँधना’ मूल, बँधना' कर्मकतूक, 'बधाना' प्रेरणा और ‘बँधवाना' प्रेरणा की प्रेरणा । कभी-कभी प्रेरणा' तथा कर्मकर्तृक के रूप एक ही तरह के हो जाते हैं। और तब भ्रम से लोग कर्मकर्तृक' को प्रेरणा समझ बैठते हैं । ‘राम ने वही बात श्याम से कहला दी’ प्रेरणा-रूप है। कहने का तात्विक कर्ता श्याम है और प्रेरक कर्ता 'राम' । परन्तु ‘ऐसे ही सजन ग्रन्थकार कहलाते हैं। ‘कर्मकर्तृक' प्रयोग है । साधारण वाक्य ई-- लोग ऐसे ही सज्जनों को ग्रन्थ- झार कहते हैं । यही बात कर्ता की उपेक्षा कर के यों कह देते हैं-'ऐसे ही सजन ग्रन्थकार कहलाते हैं। कर्ता की अविवक्षा में कर्म को ही कर्ता की तरह प्रयोग है | ऐसे ही सजन' कर्म है, जिस का प्रयोग कर्ता की तरह है। तन क्रिया अकर्मक-सी जान पड़ती है। कर्म जब कर्ता-सा जान पड़ता है, तो, क्रिया अपने आप अकर्मक स्थान पड़े गी ! इसी 'कर्म कर्तृक' प्रयोग को हिन्दी व्याकरण' में प्रेरणा का रूप समझ कर लिखा गया है-“कहना' के प्रेरणा- र्थक रूप अपूर्ण अकर्मक भी होते हैं, जैसे-ऐसे ही सजन अन्यकार कहलाते हैं। यह भ्रम है। ये प्रयोग प्रेरणात्मक नहीं, कर्मकर्तृक हैं। दोनों में आकाश-ताल का अन्तर है। प्रेरणा में भी ‘कहना' का रूप कहलाना' या 'कहाना होता है; किन्तु अभ्यः ‘देनर' सहायक क्रिया साथ आती है- १ मा बच्चे से ब कहला देती है। २-बहू ने अपनी सास से सच कहला दिया । कितनी ही ऐसी क्रियाएँ हैं, जिन के प्रेरणा तथा कर्मकर्तृक रूर बनाने में कोई सहायक क्रियो लगानी ही पड़ती है । | ‘सुलाना’ ‘सिलाना' आदि रूप देख कर लोग ‘फुसलाना' जैसी क्रियाओं को भी प्रेरणा समझने की गलती कर देते हैं ! “हिन्दी-व्याकरण में फुस- लाना प्रेरणात्मक क्रिया बताई गई है ! वस्तुतः यह मूल क्रिया है----‘मा बच्चे को फुसलाती हैं। बच्चा स्वयं नहीं ‘फुसलता है कि 'फुसलाना' को प्रेरणा #हो जाए!