पृष्ठ:हिंदी शब्दानुशासन.pdf/५०६

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कटवाना' जैसे प्रेरणा-रूप देख कर गवाँना' को भी हिन्दी व्याकरण' में प्रेरणा समझ लिया गया है ! जो बड़ों की बात नहीं मानते, वे अपना सर्वस्व गवाँते हैं य गवाँना साधारण सकर्मक क्रिया है । गर्दै’ कोई धातु नहीं है, जिस की प्रेरणा ‘गवाँ' धातु हो ! इस तरह की भ्रमात्मक बातें यहाँ अधिक लिखना ठीक नहीं । अपनी बात ही कहें ये । यही ठीक है ।। को' तथा 'से' विभक्तियों का प्रयोग | प्रेरणा में 'को' या 'सो' विभक्ति गौण कर्म में लगती है। यानी असली कर्ता इन विभक्तियों के साथ आता है:- १-मा बच्चे को मक्खन खिलाती है। २--मालिक नौकर से कपड़े धुलाता है, { था धुलवाता है) भूत काल में- | १-मा ने बच्चे को मक्खन खिलाया। २-मालिक ने नौकर से कपड़े धुलाए ( धुलवाए) अर्थात् ‘को' या 'से' विभक्ति गौण कर्भ में लगती है और क्रिया की गति मुख्य कुर्म के अनुसार-भक्खन खिलाया और रोटी खिलाई। इसी तरह कपड़े के अनुसार पुल्लिङ्ग बहुक्दन धुंलाए'। और धोठी धुलाई ( या ‘धुलवाई स्त्रीलिङ्ग क्रिया, धोती' के अनुसार । 'नौकर ने धोती धोयी’ और ‘मालिक ने नौकर से धोवी धुलवाई। गौथ फर्भ में विभक्ति और मुख्य कर्म के अनुसार क्रिया छा “वाय' । गौण फर्म ( बानी असली कर्ता ) में ओ विभक्तियाँ लगती हैं और उन में जो भेद है; कुछ अाघार रखता है। कईं को और कहीं से यह विभक्ति-भेद अनावश्यक नहीं है। यदि कोई कारण न होता, तो सर्वत्र एक ही विभक्ति रहती। तो, क्या कारण है इस विभक्ति-भेद का १ विभक्ति का प्रयोग ही गौण कृर्स में क्यों हुआ ? सोचने से बान पड़ता है कि जिन क्रियाओं की प्रवृत्ति असली कैर्ता के लिए है, उन के वे असली कृत १ ‘गौरा फर्म के रूप ) 'को' विभक्ति के साथ आते हैं----